लोगों ने बताया कि उनके पास रियासतकालीन दस्तावेज हैं। अब बस्तीवासी स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत पट्टे मांग रहे हैं तो निगम कच्ची बस्ती होना बताकर पट्टे नहीं दे रहा। यहां लोगों के मकान चाहे पक्के हों लेकिन कागज में कच्ची बस्ती का दंश झेल रहे हैं।
100 वर्ष की आबादी का तथ्य नजरअंदाज
स्थानीय बुर्जुग चरनसिंह ने बताया कि उनके पूर्वज गणेश जी मंदिर के पास रहा करते थे। वहां बाढ़ का पानी आने एवं अन्य समस्याएं होने के कारण रियासतकाल में ही सबको बी.नारायण गेट के पास बसने की इजाजत दी गई थी। आज भी बस्ती वासियों के पास वर्ष 1905 से लेकर अब तक तत्कालीन नगर पालिका द्वारा मकान निर्माण के लिए जारी की गई निर्माण मंजूरी के कागज मौजूद हैं।
निगम ने जब उनकी बस्ती को कच्ची बस्ती में शामिल किया तो स्थानीय लोगों को भनक तक नहीं लगने दी गई। स्टेट ग्रांट एक्ट में निर्धारित वर्षों की समय सीमा के वे दस्तावेज पेश करने होते हैं, जो प्रमाण दें कि आवास पूर्व का बना हुआ है। बस्तीवासियों के पास रियासतकालीन दस्तावेज हैं तो उनको निगम मान्य नहीं कर अपनी जिद पर अड़ा हुआ है।
ऋण भी नहीं ले सकते स्थानीय लोगों की पीड़ा यह भी है कि उनके पुश्तैनी मकान पर उनका कागजों में कानूनी हक नहीं है। पट्टा नहीं मिलने से वे अपनी संपत्ति पर ऋण लेने के हकदार भी नहीं हैं।
प्रशासन से मिला प्रतिनिमंडल एक प्रतिनिधिमंडल शुक्रवार को अतिरिक्त जिला कलक्टर (शहर) से मिला और उन्हें प्रकरण से अवगत कराया। जानकारी के अनुसार बस्तीवासी शनिवार को मेयर शिवसिंह भोंट से मुलाकात कर उन्हें स्टेट ग्रांटएक्ट के पट्टे दिलाने की मांग का ज्ञापन देंगे।