उफ...खुद का ही कर रहे करोड़ों रुपए का नुकसान
-नगर निगम से दुबारा जाएगी स्वायत शासन विभाग के पास रिपोर्ट, पिछली रिपोर्ट पर सवाल उठा चुकी है संघर्ष समिति

भरतपुर. भरतपुर के करीब नौ किमी लम्बे रियासतकालीन कच्चे परकोटे का है। यह परकोटा रियासतकाल में भरतपुर शहर के लिए सुरक्षा की दीवार के रूप में काम आता था। आजादी के बाद से इस पर अतिक्रमण होने शुरू हो गए। और तब भरतपुर नगर पालिका या नगर परिषद ये अतिक्रमण होने देती रही। अब यहां नियमन को लेकर आंदोलन चल रहा है। ऐसे में नगर निगम आयुक्त डॉ. राजेश गोयल ने शनिवार सुबह स्टाफ के साथ सूरजपोल गेट से दिल्ली गेट तक स्थित परकोटे कच्चे डन्डे पर बने हुए भवनों व आने जाने वाले आम रास्ते आदि का अवलोकन किया।
कच्चा परकोटा नियमन संघर्ष समिति व नगर निगम के पूर्व प्रतिपक्ष नेता इन्द्रजीत भारद्वाज ने आयुक्त नगर निगम को मौके पर ले जाकर अवलोकन कराया कि परकोटे पर रहने वाले लोगों को अधिकांश हिस्सों में आने जाने के लिए उपयुक्त मात्रा में आम रास्ते की चौड़ाई स्थित है। नगर पालिका, नगर परिषद भरतपुर की ओर से सन 1957 से लेकर 1977 तक परकोटे की भूमि पर दिए गए पट्टों की सूची एवं परकोटे के मानचित्र आदि का भी अवलोकन कराया गया और अवगत कराया गया कि शहर के परकोटे पर रहने वाले लोग जलबहाव, जलभराव क्षेत्र में नहीं हैं। मौके पर ले जाकर परकोटे एवं सीएफसीडी की सीमाओं का भी अवलोकन कराया गया। आयुक्त ने सूरजपोल, जघीना गेट, गोवर्धन गेट, दिल्ली गेट आदि परकोटे क्षेत्र का घूमकर अवलोकन किया। आयुक्त ने सीएफसीडी की शेष रही सहयोग नगर की एप्रोच रोड को पूर्ण कराने एवं सीएफसीडी से जलकुंभी को निकालकर सफाई कराने के मौके पर निर्देश दिए। परकोटे की जमीन एवं सीएफसीडी के बारे में अधीनस्थ अधिकारियों एवं क्षेत्रीय पार्षदों से जानकारी ली गई। साथ ही साथ यह भी कहा गया कि जो सीएफसीडी की एप्रोच रोड जहां जहां निर्मित नहीं है, वहां एप्रोच रोड का कार्य शीघ्र प्रारम्भ कराया जाए। परकोटे के पट्टों के संदर्भ में आयुक्त ने स्पष्ट किया कि कच्चे डंडे पर रहने वाले लोगों को पट्टे देने का प्रस्ताव राज्य सरकार को शीघ्र भिजवा दिया जाएगा और स्वीकृति मिलने पर पट्टे देने का काम नगर निगम से कराया जाएगा। इस मौके पर नगर निगम के अधिशाषी अभियंता विनोद चौहान, सहायक अभियंता लोकेन्द्र जैन, पार्षदपति अशोक लवानियां, पार्षद विष्णु मितल, पार्षद राकेश पठानियां, शैलेष पाराशर, मनोनीत पार्षद परवीन वानो, संघर्ष समिति के संयोजक जगराम धाकड़, उप संयोजक श्रीराम चंदेला, भागमल वर्मा, कै. प्रताप सिंह, समंदर सिंह, गोपीकांत शर्मा, मान सिंह, नसीर खां, राजू शर्मा, जमील कुरेशी, श्रीकृष्ण कश्यप, राजवीर, ओमप्रकाश, वैध मुकेश शर्मा, रतीराम लोधी, नरेश शर्मा, चन्द्रशेखर शर्मा, गौरव अग्रवाल सरदार किसन सिंह, जगदीश खंडेलवाल, मुरारी सिंघल, गौरव अग्रवाल, अनिल प्रताप सिंह आदि मौजूद थे।
ढाई सौ पट्टे तो चार दशक पहले जारी हो चुके
स्थानीय निकाय 1958 से 1977 तक 260 पट्टा जारी कर चुका है। बदले में उस समय की नगर परिषद को एक पट्टा जारी करने पर पचास रुपए प्रति वर्ग गज की दर से राजस्व प्राप्त हुआ था। अब सवाल उठ रहा है कि निगम अब इसमें आनाकानी क्यों कर रहा है। जबकि पहले तो पुरातत्व विभाग की बहुत बड़ी अड़चन थी। तब उसकी बिना एनओसी के आखिर नगर निकाय ने पट्टा जारी कैसे कर दिए? 2003 में पुरातत्व विभाग ने इस परकोटे को नगर निगम को सौंप दिया। उस समय इस परकोटे पर 1448 अतिक्रमण थे। पुरातत्व विभाग की अनापत्ति के बाद पट्टा जारी करने की सारी अड़चनें दूर हो गईं। इसके बाद भी निगम प्रशासन आनाकानी कर रहा है। मामला खिंचता रहा।
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