-वह पेशेवर राजनीतिज्ञ नहीं थे, केवल सौखिया तौर पर राजनीति में आए थे। आज की राजनीति देख कर तो बड़ा दुख होता है। पहले राजनीति में जिस तरह का वातावरण होता था, वह पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। वह 1985 से 1990 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे। उस समय उनके कार्यालय में पक्ष-विपक्ष के लोग हंसी ठहाके और चाय-कॉफी की चुस्की के साथ वार्ता करते थे और जनहित के विषय पर सभी एक होते थे। अब ऐसा कम ही दिखाई देता है।
– प्रश्न:सरकारें बनाने के लिए खरीद-फरोख्त होती है, आप क्या कहते हैं
-अब सरकार बनाने के लिए इंसानों की खरीद-फरोख्त हो रही है। इससे ज्यादा क्या होगा। अब नेताओं के लिए पार्टी की अहमियत नहीं रही, केवल पद, पैसा और कुर्सी के लिए कुछ भी हो सकता है। राजनीति की बातें करना अब अच्छा नहीं लगता, अब हर जगह गड़बड़ हो चुकी है। वह पुराने समय को याद कर समय व्यतीत कर रहे हैं। अब नेताओं में भैरोंसिंह शेखावत, हरदेव जोशी व शिवचरण माथुर जैसी कबीलियत नहीं रही है। हर चीज अब कुर्सी तक सिमट कर रह गई है।