जानकारी के अनुसार किला स्थित बांके बिहारीजी मंदिर का निर्माण फरवरी 2018 में शुरू हुआ था। इसकी अनुमानित लागत करीब 10.38 करोड़ आंकी गई। मंदिर के निर्माण में प्रयोग होने वाला पत्थर बंशी पहाड़पुर का है और इसके निर्माण नागर शैली के आधार पर किया जा रहा है। यह निर्माण कार्य दिसम्बर 2019 में पूरा होना था, लेकिन वर्तमान समय तक यह निर्माणाधीन है। इसके पीछे का मुख्य कारण बताया जाता है कि मंदिर को पूरे समय के लिए दर्शनार्थियों के लिए खोला जा रहा है। भक्तों के आवागमन के चलते काम धीमी गति से चल रहा है। हालांकि निर्माण कार्य अब अंतिम चरण में चल रहा है और आगामी करीब एक माह में पूरा होने की संभावना जताई जा रही है। परंतु अचानक मंदिर के एक हिस्से में आई दरारों से निर्माण कार्य पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्योंकि अभी कार्य पूरा भी नहीं हुआ है।
बंसी पहाड़पुर के पत्थर से निर्माण, नागर शैली का प्रयोग आरएसआरडीसी के अधिकारियों ने बताया कि मंदिर निर्माण के लिए बंसी पहाड़पुर के पत्थर का उपयोग किया जा रहा है। इसके पीछे की खास वजह यह है कि इस पत्थर में नक्काशी का कार्य बहुत ही बेहतरीन तरीके से होता है। साथ ही मजबूती के चलते इस पत्थर की लाइफ बहुत अच्छी होती है। मंदिर की खासियत यह है कि इसके निर्माण में गुंबद और मेहराबों का प्रयोग किया जा रहा है जो कि नागर शैली पर आधारित हैं। यह मंदिर भविष्य में भरतपुर के सुंदरतम मंदिरों में से एक होगा। यह अपने आप में एक नायाब मंदिर होगा। बताया गया है कि अयोध्या का राम मंदिर भी नागर शैली पर आधारित है।
मंदिर में यह हुआ है निर्माण
श्रीबिहारीजी के मंदिर का पुनर्निर्माण प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला नागर शैली में किया जा रहा है। इसके तहत मंदिर में तीन मंडप तैयार किए गए हैं, इसमें नृत्य मंडप, रंग मंडप और गर्भगृह का निर्माण किया गया है। अयोध्या के राम मंदिर का डिजाइन तैयार करने वाले कंसलटेंट और वास्तुविद सीबी सोमपुरा ने ही भरतपुर के श्री बांके बिहारीजी के मंदिर का डिजाइन तैयार किया है। यही वजह है कि बिहारीजी मंदिर में अयोध्या के राममंदिर की झलक दिखाई देगी। भरतपुर के श्रीबांके बिहारीजी के मंदिर का पुनर्निर्माण उसी बंसी पहाड़पुर के विश्व प्रसिद्ध पत्थर से हो रहा है, इससे अयोध्या के राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। मंदिर के निर्माण में बयाना और उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी के अंतरराष्ट्रीय स्तर के राजमिस्त्री कार्य कर रहे हैं।
सामने देवस्थान विभाग का ऑफिसर, अफसरों को मालूम ही नहीं जिस देवस्थान विभाग की ओर से बिहारीजी मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य कार्यकारी एजेंसी से कराया जा रहा है, उसी विभाग का कार्यालय जहां स्थित, उस साइड में ही मंदिर के हिस्से में दरारें आई हैं, परंतु जानकर आश्चर्य होगा कि अभी देवस्थान विभाग के किसी भी अधिकारी को दरारों के आने के बारे में कोई जानकारी तक नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट है कि कहीं न कहीं खुद देवस्थान विभाग के अधिकारियों की ओर से भी लापरवाही बरती जा रही है।
कहां से आई बिहारीजी की मूर्ति, कैसे हुई प्रतिष्ठा मंदिर महंत मनोज भारद्वाज बताते हैं कि हरिदासजी वैष्णव समाज के थे, वह एक प्रसिद्ध संगीतकार भी थे और उनके सभी भजन केवल श्रीकृष्ण को ही समर्पित थे। हरिदासजी का जन्म सन् 1535 में भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को वृन्दावन के ही निकट गांव में हुआ था। इनके पिता गंगाधर एवं माता चित्रा देवी थीं। हरिदासजी ने स्वामी आशुधीर के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की और उन्हीं से युगल मन्त्र की दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद वे यमुना के समीप ही एकांतवास में चले गए। वहीं ध्यानमग्न रहने लगे। युवावस्था तक वे और अधिक भक्ति में लीन हो गए। वह कभी कभी प्रभु भक्ति में लीन होकर ऐसे भजन गाते कि उनकी आंखों से प्रेम के अश्रु बहने लगते। कहा जाता है, उनके मधुर भजन सुनकर और उनके मन के शुद्ध भावों को देखकर श्रीकृष्ण तथा राधारानी ने उन्हें दर्शन भी दिए। वह चाहते थे कि बिहारीजी सदैव उनके पास ही रहें। इसलिए बिहारीजी और राधारानी एक विग्रह के रूप में प्रकट हुए। हरिदासजी को स्वप्नादेश दिया कि उनके विग्रह को भूमि से बाहर निकालो तथा उसकी सेवा करो। यही विग्रह बांके बिहारी नाम से जग में प्रसिद्ध हुआ। मूर्ति को मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन निकाला गया था। इसलिए इस दिन को प्रत्येक वर्ष प्राकट्य दिवस के रूप में मनाते हैं।
इनका कहना है - मंदिर में आई दरार का आर्किटेक्ट ने भी निरीक्षण किया। उन्होंने इन दरारों के आने का मुख्य कारण तापमान का उतार-चढ़ाव बताया। पत्थर व कोटिंग का काम ड्रॉइंग में शामिल है। पत्थर को सेट होने में समय लगता है। एक सीजन के बाद कोई समस्या नहीं आएगी।
अनिरूद्ध सिंह, सहायक अभियंता, आरएसआरडीसी
- मुझे कार्यकारी एजेंसी ने सिर्फ एक दरार के बारे में बताया था। पत्थर भी लगाए जा रहे थे तो मैंने पूछा था कि यह पत्थर किस आधार पर लगाए जा रहे हैं। इस पर उन्होंने ड्राइंग के अनुसार काम की बात कही थी। बाकी अन्य दरारों के बारे में कार्यकारी एजेंसी ने कुछ भी नहीं बताया था।
केके खण्डेलवाल, सहायक आयुक्त, देवस्थान विभाग