लेकिन, कुछ समय पूर्व चांदपोल दरवाजे पर लगाई गई पट्टिका को असामाजिक तत्वों ने तोड़कर क्षतिग्रस्त कर दिया। वहीं दरवाजे की दीवारों के स्वरूप को भी नुकसान पहुंचाया। इन हरकतों से लोहागढ़ के इतिहास को संजोने की उम्मीद कैसे की जा सकती है, जिसे लेकर पुरातत्व विभाग चिंतित है।
शहर में कच्ची मिट्टी के परकोटे के चारों ओर मथुरा गेट, नीमदा गेट, अनाह गेट, गोवर्धन गेट, चांदपोल गेट, सूरजपोल गेट, कुम्हेर गेट, बीनारायण गेट, अटलबंद, केतन गेट आदि नाम से ऐतिहासिक दरवाजे हैं। हर दरवाजे के निर्माण और नाम का अपना इतिहास है। राजा-महाराजाओं ने इतिहास के महत्व के अनुरूप ही इनका नामकरण किया था। जिसे शिला पट्टिका पर लिखा जाना था।
गौरतलब है कि शहर में ऐतिहासिक दस दरवाजे लंबे समय से जर्जर हो रहे थे। वर्षों बाद इन दरवाजों के जीर्णोद्धार और इतिहास को कायम रखने के लिए 1.25 करोड़ रुपए में कार्य कराना तय था। इन पर रंग-रोगन के बाद अब शिला पट्टिका और नक्शा लगाने का कार्य किया जा रहा था। लेकिन, असामाजिक तत्व इन्हें क्षति पहुंचाने से बाज नहीं आए।
यहां के लोगों को ऐतिहासिक धरोहरों को बनाए रखने के लिए जागरूक होना चाहिए। मगर, स्थिति इसके विपरित है। पुरातत्व विभाग भरतपुर के संभागीय अधीक्षक सोहनलाल चौधरी का कहना है कि चांदपोल दरवाजे पर हाल ही में शिला पट्टिका लगाई थी, जिस पर दरवाजे का इतिहास लिखा था। असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिया। ऐसा नहीं करना चाहिए और लोगों को जागरूक होना चाहिए।