डॉ. व्यास ने बताया कि जन्म से 16 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को ड्रॉप के माध्यम से औषधि दी जाती है, जिससे काफी सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। यही वजह है कि प्रारम्भिक उत्साहजनक परिणामों को देखते हुए एम्स , जोधपुर के साथ आयुर्वेद विवि जोधपुर द्वारा स्वर्णप्राशन पर क्लिनिकल रिसर्च का प्रस्ताव तैयार कर आयुष मंत्रालय भारत सरकार को भेजा गया है।
पुष्य नक्षत्र पर मिलते हैं चमत्कारिक परिणाम
आयुर्वेद विवि के बालरोग विभागाध्यक्ष डॉ. व्यास ने बताया कि स्वर्ण भस्म शरीर के प्रत्येक टिस्यू और कोशिका में प्रवेश कर वहां के असंतुलन या विकृति को सही करती है। लेकिन पुष्य नक्षत्र पर पिलाने से इस ड्रॉप के विशेष चमत्कार देखने को मिलते हैं। क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती है। पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है, इसलिए पुष्य नक्षत्र पर अच्छे परिणाम के लिए कम से कम छह बार यह ड्रॉप पिलानी चाहिए।
आयुर्वेद विवि के बालरोग विभागाध्यक्ष डॉ. व्यास ने बताया कि स्वर्ण भस्म शरीर के प्रत्येक टिस्यू और कोशिका में प्रवेश कर वहां के असंतुलन या विकृति को सही करती है। लेकिन पुष्य नक्षत्र पर पिलाने से इस ड्रॉप के विशेष चमत्कार देखने को मिलते हैं। क्योंकि इस दिन ग्रहों की शक्तियां ज्यादा होती है। पुष्य नक्षत्र हर महीने में एक बार आता है, इसलिए पुष्य नक्षत्र पर अच्छे परिणाम के लिए कम से कम छह बार यह ड्रॉप पिलानी चाहिए।
कश्यप व सुश्रुत संहिता में है उल्लेख
डॉ. व्यास ने बताया कि स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है और यह प्राचीन समय से चला आ रहा है। पुराने समय माता.पिता अपने बच्चे के जन्म लेने के बाद जीभ पर चांदी या सोने की सिलाई से ‘ऊं’ लिखते थे, लेकिन अब यह संस्कार विलुप्त हो गया है। हाल ही महाराष्ट्र में इसका प्रयोग हजारों बच्चों पर शोध के रूप में किया गया, तो सामने आया कि ये बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में स्वस्थ और असाधारण गुणों से भरपूर थे।
डॉ. व्यास ने बताया कि स्वर्णप्राशन संस्कार का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में भी है और यह प्राचीन समय से चला आ रहा है। पुराने समय माता.पिता अपने बच्चे के जन्म लेने के बाद जीभ पर चांदी या सोने की सिलाई से ‘ऊं’ लिखते थे, लेकिन अब यह संस्कार विलुप्त हो गया है। हाल ही महाराष्ट्र में इसका प्रयोग हजारों बच्चों पर शोध के रूप में किया गया, तो सामने आया कि ये बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में स्वस्थ और असाधारण गुणों से भरपूर थे।
स्वर्णप्राशन ड्रॉप के लाभ
– स्वर्णप्राशन का उपयोग विकृतियों को ठीक कर बीमार या विकृत कोशिकाओं को फिर से सक्रिय व जीवंत कर देती है।
– रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
– शरीर से अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है।
– याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है, जिससे अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
– हर्ट मसल्स को शक्ति देता है और शरीर में ब्लड़ सर्कुलेशन को बढ़ाता है।
– स्वर्णप्राशन का उपयोग विकृतियों को ठीक कर बीमार या विकृत कोशिकाओं को फिर से सक्रिय व जीवंत कर देती है।
– रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
– शरीर से अनेक प्रकार के विषैले पदार्थों को दूर करता है।
– याददाश्त और एकाग्रता को बढ़ाता है, जिससे अध्ययनरत बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
– हर्ट मसल्स को शक्ति देता है और शरीर में ब्लड़ सर्कुलेशन को बढ़ाता है।
ये है स्वर्णप्राशन ड्रॉप
स्वर्णप्राशन का शास्त्रीय विधि से निर्मित शुद्ध स्वर्णभस्म को निश्चित अनुपात में महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों (ब्राह्मी, वचा आदि) से साधित गोघृत (गाय का घी) व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया गया है। इसमें कुछ मेध्य टॉनिक मिलाए गए हैं, जो मेधा शक्ति (बुद्धि) को बढ़ाते हैं। शोध के अनुसार मस्तिष्क और आंखों के विकास में स्वर्णप्राशन का विशेष महत्व है। आधुनिक शोध के अनुसार गाय के घी में विद्यमान डीएचए और ओमेगा थ्री फैट्टी एसिड डवलपिंग ब्रेन और रेटिनल टिस्सु के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देता है और शहद व घी शरीर में रोगाणुओं से लडऩे के लिए शरीर में एंटीबॉडीज की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं।
स्वर्णप्राशन का शास्त्रीय विधि से निर्मित शुद्ध स्वर्णभस्म को निश्चित अनुपात में महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों (ब्राह्मी, वचा आदि) से साधित गोघृत (गाय का घी) व शहद के साथ ड्रॉप के रूप में तैयार किया गया है। इसमें कुछ मेध्य टॉनिक मिलाए गए हैं, जो मेधा शक्ति (बुद्धि) को बढ़ाते हैं। शोध के अनुसार मस्तिष्क और आंखों के विकास में स्वर्णप्राशन का विशेष महत्व है। आधुनिक शोध के अनुसार गाय के घी में विद्यमान डीएचए और ओमेगा थ्री फैट्टी एसिड डवलपिंग ब्रेन और रेटिनल टिस्सु के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देता है और शहद व घी शरीर में रोगाणुओं से लडऩे के लिए शरीर में एंटीबॉडीज की प्रक्रिया को उत्प्रेरित करते हैं।