शरद पूर्णिमा का महत्व शरद पूर्णिमा प्राचीनकाल से अति महत्वपूर्ण दिन के रूप में प्रसिद्ध है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु का आगमन माना जाता है। यही से ठंड बढऩा आरंभ हो जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा को ही हुई थी। इसी कारण शरद पूर्णिमा को धनदायक तिथि माना जाता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार शरद पूर्णिमा को ही श्रीकृष्ण महारास की रचना का वर्णन मिलता है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के अत्यधिक निकट होने से सोलह कलाओं से युक्त होता है। धवल चांदनी रात में चंद्र रश्मियां अमृत युक्त होती है। चंद्र रश्मियों से अमृत और औषधि की प्राप्ति होती है।
खीर और वैज्ञानिकता दूध में लैक्टिक अम्ल तथा अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिकाधिक शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह अभिक्रिया त्वरित गति से संपन्न होती है। इसी वैज्ञानिकता को ध्यान में रखते हुए शरद पूर्णिमा को रात्रि में खुले आसमान के नीचे गौर दुग्ध से तैयार खीर में जब सीधी चंद्र रश्मियां प्रवेश करती हैं तो इसे अमृत तुल्य औषधि माना जाता है।
खीर और ज्योतिष शास्त्र खीर में मिश्रित दुग्ध, चीनी और चावल के कारक को भी चंद्रमा माना जाता है। इससे चंद्रमा का इन पर प्रभाव सर्वाधिक माना जाता है। जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हो, महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो चंद्रमा की पूजा करते हुए स्फटिक माला से ऊॅ सोमाय नम: मंत्र का जाप करेन से चंद्रजन्य दोष का निवारण होगा।