भरतपुर

Bharatpur News : इस बीमारी ने डेढ़ साल में निगल ली तीन भाइयों की जिंदगी, अब तीनों विधवाएं ऐसे पाल रहीं दस बच्चों का पेट

भरतपुर. जिले के रुदावल कस्बे से महज दो किलोमीटर दूरी का गांव खेड़ाठाकुर। इस गांव में जाटव व कोली जाति के अधिकांश परिवार पत्थर कार्य से जुड़े हुए हैं। पत्थर कार्य करने के दौरान पहले जहां उपचार के अभाव में श्रमिक की मौत हो जाती थी, वहीं अब इस रोग की पहचान होने के बाद इस गांव में सिलिकोसिस से पीडि़त मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। साथ ही इससे मरने वालों का सिलसिला जारी है। यहां आए दिन सिलिकोसिस से किसी न किसी की मौत होती रहती है।

भरतपुरMay 04, 2019 / 12:21 pm

shyamveer Singh

Bharatpur News : इस बीमारी ने डेढ़ साल में निगल ली तीन भाइयों की जिंदगी, अब तीनों विधवाएं ऐसे पाल रहीं दस बच्चों का पेट

भरतपुर. जिले के रुदावल कस्बे से महज दो किलोमीटर दूरी का गांव खेड़ाठाकुर। इस गांव में जाटव व कोली जाति के अधिकांश परिवार पत्थर कार्य से जुड़े हुए हैं। पत्थर कार्य करने के दौरान पहले जहां उपचार के अभाव में श्रमिक की मौत हो जाती थी, वहीं अब इस रोग की पहचान होने के बाद इस गांव में सिलिकोसिस से पीडि़त मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। साथ ही इससे मरने वालों का सिलसिला जारी है। यहां आए दिन सिलिकोसिस से किसी न किसी की मौत होती रहती है। गांव में डेढ़ साल में एक परिवार के तीन भाई इसी बीमारी की भेंट चढ़ गए। इस परिवार में अब कोई कमाने वाला पुरुष नहीं रहा है। तीनों विधवाएं मजदूरी कर दस बच्चों का पालन-पोषण करने को मजबूर हैं।
 


गांव का सोनपाल कोली पत्थर का काम करता था। सिलिकोसिस बीमारी से पीडि़त सोनपाल करीब 52 साल की उम्र में चल बसा। सोनपाल की मौत के बाद उसके तीन बेटे नहनू, मुकेश व बिरजू कोली भी पत्थर का काम कर परिवार चलाने लगे। इस बीमारी ने तीनों ही भाईयों को अपने प्रभाव में लिया और 09 अक्टूबर 2018 में नहनू कोली की 33 साल की उम्र में मौत हो गई। नहनू की मौत के सदमे से परिवार उबर भी नहीं पाया था कि छह माह बाद 24 मार्च 2019 को दूसरे भाई मुकेश कोली की 32 साल की उम्र में हुई मौत ने परिवार को तोड़ दिया। तीन भाइयों के घर में दो जवान भाइयों की मौत के बाद 07 अप्रेल 2019 को तीसरे बड़े भाई बिरजू की मौत हो गई। इस घटना के बाद सुमन पत्नी मुकेश, कृष्णा पत्नी नहनू एवं बैजन्ती पत्नी बिरजू विधवा हालत में सभी दस बच्चों के भविष्य को लेकर चिन्तित हैं।
 


परिजनों को सहायता का इंतजार
विधवा कृष्णा ने बताया कि तीनों भाइयों के पास कोई कृषि भूमि भी नहीं है। सरकार की ओर से सहायता राशि के रुप में उसके पति नहनू को बीमारी के दौरान एक लाख रुपए की सहायता जरूर मिली। दो भाइयों को तो बीमारी के समय भी सहायता नहीं मिल सकी। वहीं मृत्यु होने के बाद तीनों ही विधवाओं को कोई सहायता नहीं मिल सकी है। तीनों ही विधवाएं नरेगा योजना में मजदूरी करने के अलावा खेतों पर मजदूरी कर परिवार पालने को मजबूर हैं। कृष्णा ने बताया कि उसके पति की मौत को करीब सात महीने हो गए हैं, लेकिन उसकी विधवा पेंशन भी चालू नहीं हो सकी है।
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