scriptबड़े-बड़े वादे के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी | Tribals deprived of basic amenities despite big promises | Patrika News

बड़े-बड़े वादे के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी

locationभरतपुरPublished: Aug 11, 2020 09:13:08 pm

Submitted by:

rohit sharma

सन् 1942 में आज ही के दिन देशवासियों की ओर से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें आदिवासियों का भी बड़ा योगदान रहा।

बड़े-बड़े वादे के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी

बड़े-बड़े वादे के बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित आदिवासी

भरतपुर. सन् 1942 में आज ही के दिन देशवासियों की ओर से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी जिसमें आदिवासियों का भी बड़ा योगदान रहा। यूं तो 1855 में ही स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व ही आदिवासियों ने करो या मरो, अंग्रेजों माटी छोड़ो का नारा बुलंद कर अंग्रेजों के शासन की नींव हिला दी थी। स्वतंत्रता के बाद से लेकर आज तक इस दिन को हम औपचारिकता निभाते हुए आदिवासी दिवस के रूप में भले ही मनाते चले आ रहे है लेकिन स्वतंत्र भारत में आदिवासी लोगों के लिए विकास के नाम पर सिर्फ दिखावे के अलावा कुछ नहीं कर पाए है। आज भी इन आदिवासी लोगों के लिए सरकारी सुविधाएं केवल कागजों में ही सिमटकर रह गई हैं। ऐसा ही एक उदाहरण डीग उपखंड की ग्राम पंचायत अऊ के अंतर्गत 10 परिवारों के समूह में रहने वाले भीलों के डेरा के हालात को देखकर साफ नजर आता है। जहां आदिवासी भील आज भी बिजली, पानी, आवास तथा रास्ते जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। पीने के पानी के लिए डेढ़ किलोमीटर से पानी लाना इनके लिए रोज की आदत हो गई है। वहीं बरसात के दिनों में इनकी बस्ती में गन्दा पानी इकठ्ठा होने से लोगों का डेरा से बाहर निकलना दूभर हो जाता है। वहीं बच्चे भी बरसात के मौसम में स्कूल जाने से वंचित रह जाते हैं। यदि अगर कोई बीमार हो जाये तो उसे कन्धों पर बैठाकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। जहां एक तरफ शासन और प्रशासन की ओर से इन्हें कोई राहत नहीं मिली है। वहीं ग्राम पंचायत प्रशासन भी आबादी की भूमि नहीं होना बताकर अभी तक पल्ला झाड़ता चला आ रहा है। अभी तक इन लोगों की मूलभूत सुविधाओं को प्रशासनिक अधिकारी और जन प्रतिनिधियों ने भी नजरअंदाज किया है। फिर चाहे मामला वोट का हो या सरकारी सुविधाओं का यह लोग आज भी दोयम दर्जे की जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। आदिवासी भीलों का कहना है कि सरपंच से लेकर एमपी, एमएल, तक बड़े-बड़े वादे कर वोट मांगने आते हैं लेकिन आज तक कोई सुविधा ंउनको नहीं मिली है। इनका दर्द है कि ग्राम पंचायत से लेकर उपखंड अधिकारी व जिला कलक्टर तक समस्याओं से अवगत कराने के बाद भी उनकी समस्याओं की ओर किसी ने भी अभी तक ध्यान नहीं दिया है।
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