भरतपुर

जब आर्थिक तंगी ने दिखाया असर तो उर्मिला ने पाई स्वरोजगार से सफलता

-नदबई के गांव पहरसर की उर्मिला की कहानी

भरतपुरOct 20, 2020 / 12:53 pm

Meghshyam Parashar

जब आर्थिक तंगी ने दिखाया असर तो उर्मिला ने पाई स्वरोजगार से सफलता

भरतपुर. नदबई के गांव पहरसर की उर्मिला की कहानी भी स्वरोजगार से सफलता की नींव पर लिखी गई है। जब आर्थिक तंगी और बढ़ता खर्च दिखने लगा तो उन्होंने भी स्वरोजगार करने का निर्णय लिया। परिवार ने भी उनका भरपूर साथ दिया। वर्ष 2012 में एक संस्था के साथ एसएचजी सदस्य के रूप में जुड़ी और समूह में थोड़ी-थोड़ी बचत करना शुरू कर दिया। इनको सिलाई का काम आता था। वर्ष 2014 में एक संस्था ने इनको 50 प्रतिशत अनुदान पर सिलाई मशीन दिलाई। इससे उन्होंने अपने घर पर ही महिला वस्त्र बनाने का काम शुरू कर दिया।
वर्ष 2015 में उर्मिला को एक संस्था ने ही 20 हजार रुपए का ऋण प्रदान किया। इससे इन्होंने अपने घर के एक कमरे को दुकान की तरह इस्तेमाल किया। महिलाओं के अन्य वस्त्र (फॉल, धागा, ब्लाउज पीस आदि) तथा महिला सौंदर्य प्रसाधन का सामान भी रखना शुरू किया। धीरे-धीरे इनकी दुकान गांव तथा आसपास के इलाके में प्रसिद्ध हो गई। इनका काम बहुत अच्छा चलने लगा। आज ये अपने काम से प्रतिमाह करीब 13-14 हजार रुपए प्रतिमाह कमा रही है। जो आज किसी भी साधारण परिवार के लिए बहुत बड़ी बात है। इनके चार बच्चे हैं। एक बेटी की शादी हो चुकी है। दूसरी बीए की पढ़ाई कर रही है तथा अपनी मां के साथ काम में हाथ बंटाती है। एक बेटा रेडियोलॉजी की पढाई कर रहा है। दूसरा कॉलेज की पढाई कर रहा है। आज इनका आर्थिक एवं सामाजिक स्तर भी अच्छा हो गया है। वह कहती है कि किसी के यहां रोजगार कर सीखने को मिलता है, लेकिन खुद का रोजगार कर आत्मविश्वास बढ़ता है।
हर धर्म की महिलाओं ने अपनाया स्वरोजगार

पिछले कुछ समय से देशभर में स्थानीय रोजगार को बढावा देने की बात कही जा रही है, लेकिन यह भी हकीकत है कि भरतपुर जिले में किसी भी धर्म की महिला हो, उन्होंने स्वरोजगार को बहुत अच्छे तरीके से अपनाया है। उदाहरण के तौर पर रूपवास के खानुआ गांव निवासी रेशमा की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है। जो कि मुस्लिम होने के बाद तुलसीमाला बनाने का काम कर रही है। उनकी हाथ से बनी महिला कुछ अनूठी होती है।

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