भरतपुर जिले के लिए धौलपुर से पानी लिफ्ट करने चम्बल नदी का पानी उपलब्ध कराने के लिए बनी योजना धन के अभाव में लडख़ड़ा गई है। सरकार की योजना के प्रति बेरूखी को देखते हुए इस योजना से जुड़ी फर्मों ने भी अपने काम की रफ्तार को काफी धीमा कर दिया है। ऐसे में पहले ही देरी से चल रहे इस योजना के काम लम्बे खिंच सकते हैं।
दिन-ब-दिन घुल रहा लवणता जिले में भूजल अत्यधिक खारा है। कम वर्षा के कारण अत्यधिक दोहन होने से भूगर्भीय लवणों की घुलनशीलता से दिन पर दिन यह और भी खारा हो रहा है। भरतपुर जिले को पर्याप्त एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए चम्बल-धौलपुर-भरतपुर परियोजना बनाई गई थी।
परियोजना को दो चरणों एवं उनके दो भागों में विभक्त किया गया है, लेकिन सरकार द्वारा पर्याप्त धन राशि की व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण कम्पनियों द्वारा काम धीमी गति से किया जा रहा है।
इतने गांवों की बुझनी है प्यास इस परियोजना में भरतपुर जिले की खारे पानी की समस्या से ग्रसित तहसील भरतपुर (157 गांव), कुम्हेर (117 गांव), रूपवास (142 गांव), नगर (16 4 गांव), डीग (119 गांव), कामां (114 गांव) एवं पहाड़ी (132 गांव) कुल 945 गांवों (2001 की जनगणनानुसार) एव भरतपुर जिले के 5 शहरों (भरतपुर, कुम्हेर, नगर, डीग एवं कामां) को लाभान्वित किया जाना प्रस्तावित है।
यह राशि ऊंट के मुह में जीरा जलदाय विभाग के सूत्रों के अनुसार इस परियोजना में कुल पांच फर्मेे काम कर रही हैं। इन फर्मों के जलदाय विभाग द्वारा 8 .6 8 करोड़ रुपए के बिलों की भुगतान किया जाना है, जबकि सरकार ने हाल ही में एक तिमाही (अप्रेल, मई व जून) के लिए महज सवा छह करोड़ रुपए ही दिए हैं। विभागीय जानकारों का मानना है कि यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। ऐसे ही हालात रहे तो जिले को चम्बल का मीठा पानी पिलाने का सपना अधूरा रह सकता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में रुपवास, कुम्हेर, भरतपुर, डीग, नगर, कामां व पहाड़़ी को इस योजना के तहत मीठा पानी उपल्ध कराना है।
रूपवास क्षेत्र के तीस गांवों को दो से तीन माह में पेयजल उपलब्ध कराने का प्रयास कर रहे हैं। जहां-जहां कम की गति धीमी है, उसे तेज करा रहे हैं। के. सी. अग्रवाल, अधीक्षण अभियंता, चम्बल प्रोजेक्ट।