गांव को पहचान दिलाने वाले मगरमच्छ गंगाराम को ग्रामीणों ने मंगलवार को सुबह 10 बजे पानी में उफले देखा। जिसके बाद ग्रामीणों ने करीब जाकर देखा तो मगरमच्छ की मौत हो चुकी थी। जिसके बाद मगरमच्छ का अंतिम दर्शन के लिए हजारों ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी।@Patrika केवल बावामोहतरा ही नहीं ग्राम ढारा, भोईनाभाठा, बहेरा व बेमेतरा समेत अनेक गांव के लोग तालाब पहुंच गए। गांव में ट्रैक्टर को सजा-धजा कर मगरमच्छ की शवयात्रा निकाली गई, जिसमें लोगों ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। महिलाओं ने छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में ही गंगाराम को दफन कर उसका स्मारक बनाकर उसकी याद को जिंदा रखेंगे।
बावामोहतरा के पुराने तालाब में 175 साल से रहने वाले मगरमच्छ ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। तालाब में नहाते समय यदि लोग मगरमच्छ से टकरा भी जाए तो वह स्वयं हट जाता था। @Patrika मगरमच्छ के इसी सीधेपन की वजह से ग्रामीण उसे प्यार से गंगाराम कहकर पुकारते थे।
ग्रामीणों ने बताया कि तालाब में मछलियां अधिक है, जो गंगाराम का चारा हुआ करता था, लेकिन तालाब से बाहर आकर उसे गोबर खाते हुए भी लोगों ने देखा है। @Patrika यही नहीं गांव के लोगों ने उसे दाल-भात भी खिलाया है। इसी तरह के कई किस्से गांव वालों की जुबान पर है।
सरपंच मोहन साहू ने कहा कि गंगाराम (मगरमच्छ) गांव की पहचान थे। गंगाराम की वजह से ही लोग बावामोहतरा को मगरमच्छ वाला बावामोहतरा बताते थे। @Patrika इस गांव से गंगाराम का 175 साल से नाता है। ग्राम ढारा के बीरसिंग दास बंजारे ने बताया कि लोग मगरमच्छ को भगवान की तरह मानते थे।