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कोरोनाकाल में कुपोषण से जंग नहीं आसान, दुर्ग जिले में 6 हजार तो छत्तीसगढ़ में 9 लाख मासूम बच्चे कुपोषित

locationभिलाईPublished: Nov 28, 2020 11:08:07 am

Submitted by:

Dakshi Sahu

दुर्ग जिले में 6 हजार मासूम बच्चे कुपोषण की चपेट में है। दुर्ग जिला महिला बाल विकास के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के 4,998 बच्चे जहां मध्यम कुपोषित हैं

कोरोनाकाल में कुपोषण से जंग नहीं आसान, CM के गृह जिले दुर्ग में 6 हजार तो छत्तीसगढ़ में 9 लाख मासूम बच्चे कुपोषित

कोरोनाकाल में कुपोषण से जंग नहीं आसान, CM के गृह जिले दुर्ग में 6 हजार तो छत्तीसगढ़ में 9 लाख मासूम बच्चे कुपोषित

दाक्षी साहू@ भिलाई. दुर्ग जिले में 6 हजार मासूम बच्चे कुपोषण की चपेट में है। दुर्ग जिला महिला बाल विकास के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के 4,998 बच्चे जहां मध्यम कुपोषित हैं वहीं 1061 बच्चे गंभीर कुपोषित हैं। एक साल तक मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान चलाने के बाद भी कुपोषण की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। बावजूद कुपोषण और कोरोना संक्रमण की दोहरी मार झेल रहे इन बच्चों को महिला बाल विकास पोषण पुनर्वास केंद्र पहुंचाने में नाकाम साबित हुआ है। पिछले आठ महीने में जिला अस्पताल दुर्ग में संचालित दस बिस्तर का न्यूट्रिशन रिहैबलीटेशन सेंटर कुपोषित बच्चों की बाट जोह रहा है। आम दिनों में इस सेंटर में हर महीने यहां 15 से 20 कुपोषित बच्चों का उपचार किया जाता था। (Malnutrition in Chhattisgarh)
पाटन क्षेत्र के बच्चे जिले में सबसे ज्यादा गंभीर कुपोषित
मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत जारी किए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। जिले की आठ परियोजनाओं में सबसे ज्यादा गंभीर कुपोषित बच्चे पाटन क्षेत्र में मिले हैं। क्षेत्र अंतर्गत आने वाले पाटन और जामगांव एम परियोजना के कुल 273 बच्चे गंभीर कुपोषित मिले हैं। वहीं 1357 बच्चे मध्यम कुपोषित मिले हैं। दुर्ग शहरी क्षेत्र में साल 2019 में 293 गंभीर कुपोषित बच्चे चिन्हित किए गए थे। एक साल बाद भी दुर्ग शहर में 231 बच्चे गंभीर कुपोषण से आज भी जूझ रहे हैं। वहीं 861 बच्चे मध्यम कुपोषित मिले हैं। दुर्ग ग्रामीण में 154 बच्चे गंभीर तो 697 मध्यम कुपोषित मिले हैं।
कुपोषित बच्चों को नहीं पहुंचा पा रहे पोषण पुनर्वास केंद्र
दुर्ग जिले में कुपोषण की गंभीर स्थिति को देखते हुए दो पोषण पुनर्वास केंद्र खोले गए हैं। जिला अस्पताल के अलावा पाटन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भी दस बिस्तर का एनआरसी बनाया गया है। कोरोना लॉकडाउन के बाद आंगनबाड़ी केंद्र तो खुल गए लेकिन कुपोषित बच्चे अब भी पोषण पुनर्वास केंद्र तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
यूनिसेफ ने किया है आगाह, 14 फीसदी बढ़ सकता है कुपोषण
यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 से पडऩे वाले सामाजिक और आॢथक प्रभाव के कारण इस साल विश्वभर में पांच साल से कम आयु के 67 लाख बच्चे कुपोषण संबंधी खतरनाक समस्या के शिकार हो सकते हैं। यूनिसेफ छत्तीसगढ़ हेड जॉब जकारिया ने बताया कोविड आपदा के बाद बच्चों का कुपोषण 14 प्रतिशत बढऩे की आशंका है। मीडिया कलेक्टिव फॉर चाइल्ड राइट्स फैलोशिप के तहत कोविड 19 महामारी का बच्चों पर पडऩे वाले प्रभाव का इस साल विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है।
कुपोषण मुक्ति के लिए चल रही इस तरह की योजनाएं
मां और बच्चों की सेहत में सुधार लाने व कुपोषण से मुक्ति के लिए राज्य में समेकित बाल विकास कार्यक्रम, महतारी जतन योजना, मिड-डे-मील, पोषण पुनर्वास केंद्र, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसके बावजूद अपेक्षाकृत परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं।
कुपोषण के यह गंभीर परिणाम बच्चों में
1.बच्चों का कम उम्र में विकास रूक जाना
2. वजन नहीं बढऩा
3. मानसिक और शरीरिक विकलांगता
4. एनीमिया
5. शिशु और बाल मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी
6. कुपोषण के कारण गंभीर बीमारी और संक्रमण का खतरा
महिला बाल विकास विभाग की टीम कर रही मॉनिटरिंग
विपिन जैन, जिला परियोजना अधिकारी, महिला एवं बाल विकास विभाग दुर्ग ने बताया कि मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत एक साल तक कुपोषण के लिहाज से चिन्हित बच्चों की जिलेभर में मॉनिटरिंग की गई। लॉकडाउन में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने घर-घर पहुंचकर बच्चों की जानकारी जुटाकर उनकी सेहत का ख्याल रखा। कुपोषण का स्तर घटा है। कोरोनाकाल में काम जरूर थोड़ा प्रभावित हुआ लेकिन विभाग की पूरी टीम इस दिशा में काम कर रही है। लगभग चालीस फीसदी बच्चे कुपोषण से लड़कर सामान्य स्तर पर आए हैं। लोगों को भी बच्चों को पोषक आहार देने क लिए जागरूक किया जा रहा है।
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