90 घरवाले इस गांव में 25 कारें, 45 एसी, 30 जर्मन शेफर्ड डॉग
खेती के बूते आर्थिक रूप से समृद्ध गांव जाताघर्रा, युवाओं ने संभाली खेती की बागडोर, उन्नत तकनीक से लाई आर्थिक समृद्धि
भिलाई
Published: February 24, 2022 10:40:44 am
निर्मल साहू /भिलाई. दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 49 किमी दूर ग्राम जाताघरा (धमधा), यूं तो यहां पहुंचने से पहले संकरी सड़क से धूल फांकते हुए जाना पड़ता है। गांव में पहुंचकर आपको जाताघर्रा निपट देहात भी लगेगा, मगर लोगों की समृद्धि और लाइफ स्टाइल देखकर आप दंग रह जाएंगे। वह भी सिर्फ खेती के भरोसे। कई किसानों का खेती कारोबार सालाना करोड़ तक पहुंच गया है।
90-100 परिवार या यूं कहें बमुश्किल 700 आबादी वाले इस गांव के हर तीसरे-चौथे घर में आज की जरूरत की वह सभी अत्याधुनिक सुविधाएं हैं जो शहर के नौकरीपेशा व कारोबार वाले बड़े घरों में होती है। मसलन इस छोटे से गांव में 25 कारें हैं। 45 घरों में एसी लगे हैं। बहुत से घरों में मॉड्यूलर किचन है। फ्रिज, कूलर वाशिंग मशीन, मिक्सर ग्राइंडर जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरण भी यहां के ज्यादातर घरों में मिल जाएंगे। हर किसी के पास महंगे स्मार्टफोन है। बिजली बचत के लिए लोग सोलर एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं। लगभग 30 जर्मन शेफर्ड व लेब्राडोर (डॉग) हैं। 70 ट्रैक्टर व कृषि से संबंधित अन्य मशीनरी हैं।
खेती के भरोसे आई गांव में समृद्धि
गांव में यह समृद्धि खेती से आई है। यूं तो गांव में खेती का कुल रकबा लगभग 1400 एकड़ है। इनमें ज्यादातर खेती पटेल परिवारों के पास ही है। 50 से लेकर 100 एकड़ तक। जिन लोगों के पास दो-चार एकड़ या बिलकुल भी खेत नहीं है, वे दूसरों से रेग में जमीन लेकर खेती करते हैं। ज्यादातर लोग टमाटर, केला, पपीता जैसी नगदी फसलें उगाते हैं। टमाटर की खेती ने यहां के लोगों को लाल कर दिया है। इस साल कई किसान लखपति-करोड़पति बन गए हैं। यहां लोग सिर्फ खाने के लिए 50 एकड़ में धान उगाते हैं। 700 एकड़ में सब्जी और बाकी में सोयाबीन व चने की खेती करते हैं।
यहां कर्म ही पूजा है
यहां के सभ्रांत कृषक जालम सिंह पटेल बताते हैं कि उनका गांव जाताघर्रा हर मामले में छत्तीसगढ़ के अन्य गांवों से अलग है। यहां लोग कर्म को ही पूजा मानते हैं। साल के 365 दिन में कभी खाली नहीं बैठते। छत्तीसगढ़ के गांवों में छत्तीसों त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन यहां त्योहार का मतलब सिर्फ होली और दिवाली है। बाकी दिन काम कभी बंद नहीं होता। यह उनके गांव की विरासत है जिसे आज की पीढ़ी भी बखूबी संभाल रहे हैं।
थकान मिटाने खोलते हैं बैडमिंटन, वालीबॉल
किसान रामावतार वर्मा बताते हैं कि यहां के ज्यादातर लोग दिनभर खेत में काम करते हैं। जब शाम को थक हारकर घर लौटते हैं तो युवा बैडमिंटन, वालीबॉल जैसे खेल से अपनी थकान मिटाते हैं और बड़े-बुजुर्ग देखकर आंनद लेते रहते हैं। ताश, पासा जैसे खेल की लत यहां के लोगों को नहीं है, जो हार-जीत की दांव लगाने की ओर धकेल देते हैं।
आपस में ही सुलह कर निपटा लेते हैं विवाद
ग्राम प्रमुख तुलसीराम वर्मा बताते हैं कि यह गांव सहकारिता का भी एक अच्छा उदाहरण है। जिन लोगों के पास खेत नहीं है या कम रकबा है, उन्हें बड़े लोग अपनी जमीन रेग पर देते हैं। इससे सभी की कमाई हो जाती है। पूरे गांव का जीवन स्तर उठने का यह एक बड़ा कारण है। यूं तो गांव में विवाद नहीं होता, अगर कभी किसी से मनमुटाव हो भी जाए तो गांव के सियान लोग ही आपस में सुलह करा देते हैं। पुलिस थाना तक जाने की नौबत नहीं आती।
बच्चों को दे रहे अच्छी शिक्षा
भले ही यहां के पुराने लोग कम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन आज अपने बच्चों को उच्च शिक्षा और उनकी रुचि की विधा में अवसर दे रहे हैं। जैसा कि दीप पटेल राजधानी रायपुर में एमबीए करके लौटे हैं। विवेक ज्योति पटेल ने दुर्ग में रहकर कॉन्वेंट स्कूल में अपनी पढ़ाई की। नीलकमल की रुचि खेल में है। वे इन दिनों नायडू क्रिकेट एकेडमी भिलाई में प्रशिक्षण ले रहे हैं। पढ़ाई में होनहार आजाद वर्मा साजा में मैथ्स और फिजिक्स का कोचिंग सेंटर चला रहे हैं।
सिर्फ दो लोग हैं नौकरी में, बाकी
सब किसानी ही करते हैं
लोधी बहुल वाले इस गांव में गोंड़, राउत, साहू और इक्के-दुक्के यादव, मेहर व सतनामी है। लगभग 80 फीसदी मकान पक्के हैं। इस गांव में सिर्फ दो लोग ही सरकारी नौकरी में हैं। संतोष मरकाम प्रधान पाठक हैं और संदीप वर्मा आरईएस में इंजीनियर। बाकी एक का वकील का पेशा है और धनेश वर्मा ठेकेदार। बाकी पूरा गांव किसानों का है।

90 घरवाले इस गांव में 25 कारें, 45 एसी, 30 जर्मन शेफर्ड डॉग
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