डॉक्टर बनने की इच्छा तो उसी दिन से थी जिस दिन अपने पिता को टीबी के कारण अकाल मौत के गाल में समाते हुए देखा। बलराम ने बताया कि बारहवीं सीजी बोर्ड में 87.4 प्रतिशत अंक लाने के बाद भी उन्हें नहीं पता था कि डॉक्टर बनने के लिए किस परीक्षा में बैठना पड़ता है। घर के आर्थिक हालात भी अच्छे नहीं है इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं जुटा पाया। थक हारकर बीएससी में एडमिशन ले लिया। वहां एक दिन दोस्तों से पता चला कि नीट एग्जाम के जरिए एमबीबीएस में सलेक्शन होता है। उसी दिन कॉलेज छोड़कर घर में नीट की तैयारी करना शुरू कर दिया। पहले प्रयास में असफलता हाथ लगी। बाद में किसी तरह मां ने कर्ज लेकर आगे की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाए। जिसके बाद भिलाई में एक साल हॉस्टल में रहकर तैयारी की। दूसरे प्रयास में अच्छे रैंक के साथ अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।
वन मंत्री मोहम्मद अकबर के गृह जिले से ताल्लुक रखने वाले बलराम ने बताया कि पहली बार गांव से निकलकर जब शहर में पढ़ाई के लिए रूख किया तो बहुत झिझक होती थी। कैसे शहर के बच्चों के साथ कॉम्पीटिशन कर पाऊंगा। जैसे-जैसे मेहनत करते गया खुद पर भरोसा हो गया कि गांव का बच्चा भी डॉक्टर बन सकता है। तैयारी के दौरान कई बार फीस भरने के पैसे नहीं होते थे तब हायर सेकंडरी स्कूल धरमगढ़ के टीचर मोहन धुव्रे जो रिश्ते में जीजा हैं, उन्होंने आर्थिक मदद की। वहीं सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज भिलाई के डायरेक्टर चिरंजीव जैन सर ने भी कोचिंग की फीस आधी कर दी। उनकी काउंसलिंग और पैरेंटिंग के कारण नीट की अच्छी तरह तैयारी कर पाया।
बलराम एमबीबीएस के बाद कार्डियोलॉजिस्ट बनकर गरीबों की सेवा करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि वे उस गांव से ताल्लुक रखते हैं जहां आज भी केवल प्रायमरी स्कूल तक की शिक्षा मिलती है। आदिवासी बाहुल्य होने के कारण लोगों में शिक्षा और जागरूकता की भी कमी है। कई बच्चे टैलेंटेड होते भी प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी के अभाव में गांव में ही दबकर रह जाते हैं। ऐसे बच्चों के लिए आगे चलकर कैरियर गाइडेंस की दिशा में काम करना चाहते हैं। साथ ही अपने छोटे भाई को भी डॉक्टर बनाना चाहते हैं। बलराम कहते हैं मेहनत से इंसान हर मुकाम हासिल कर सकता है। इसलिए सिर्फ अपनी मेहनत पर भरोसा करो।