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माता-पिता को याद रखने की सीख देने वाले भागवताचार्य पंडित उमेश भाई जानी नहीं रहे

locationभिलाईPublished: Sep 08, 2018 02:57:13 pm

गुजराती समाज के प्रतिष्ठित भागवताचार्य पंडित उमेश भाई जानी का हार्टअटैक से निधन हो गया। मध्यप्रदेश के बालाघाट गए थे जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा।

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माता-पिता को याद रखने की सीख देने वाले भगावताचार्य पंडित उमेश भाई जानी नहीं रहे

भिलाई. गुजराती समाज के प्रतिष्ठित भागवताचार्य पंडित उमेश भाई जानी का हार्टअटैक से निधन हो गया। मध्यप्रदेश के बालाघाट गए थे जहां उन्हें दिल का दौरा पड़ा। इसी दौरान इलाज के लिए उन्हें गोङ्क्षदया ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। गुजराती समाज सहित शहर के सभी समाजों में अपनी भागवत कथा के जरिए विशेष पहचान बनाने वाले उमेश भाई जानी के निधन की खबर से लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। अपने विशेष प्रयासों से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, कन्या भ्रूण हत्या को रोकने सहित युवाओं को धर्म से जोडऩे का काम किया। पंडित उमेश ने छत्तीसगढ़ सहित, ओडि़शा, महाराष्ट्र, यूपी सहित कई राज्यों में जाकर भागवत कथा के जरिए धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे।
इंजीनियरिंग का पेशा छोड़ बने थे भावगताचार्य
भागवत वक्ता उमेश भाई जानी ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा लेकर अपना कॅरियर बतौर इंजीनियर के रूप में शुरू किया था,लेकिन बचपन से ही पिता स्व. कृष्णकांत महाराज के साथ रहते हुए भागवत कथा में ही रम गए थे। घर का वातावरण एवं प्रभु सेवा में लीन रहने की वजह से उन्होंने सिप्लेक्स उद्योग से नौकरी छोड़ दी और वे धर्म और प्रभु सेवा में ही समर्पित हो गए। पिछले 15 वर्षो से श्रीमदभगवतगीता व शिव पुराण और अपने भजनों के माध्यम से समाज में फैली कुप्रथा, दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नशाखोरी जैसी कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।
जरूरतमंदो की करते थे मदद
उमेश भाई भागवत कथा से मिलने वाली राशि जरूरमंदो की मदद करते थे। कई छात्रों की छात्रवृति के साथ ही कैंसर पीडि़तों की मदद कर उन्होंने मिसाल पेश की। उमेश की कथा की विशिष्ठ शैली से हर वर्ग के लोग उनसे जुड़े थे। गुजराती समाज का हर उत्सव उनके मार्गदर्शन में ही होता था।
की थी नई शुरुआत
पंडित उमेश भाई जानी खासकर विधवा महिलाओं और बेटियों के लिए समाज में एक नईपरंपरा की शुरुआत की थी। उन्होंने सभी शुभ कार्यो में उन्हें सामने लाकर सम्मान दिलाया। साथ ही बुजुर्ग माता-पिता के प्रति सेवा का भाव जगाने एवं संतानों में बुजुर्गो के प्रति आदर भाव हेतु माँ-बाप को भूलो नहींÓ की प्रस्तुति वे अपने हर कार्यक्रम में देते थे। कन्याभ्रूण हत्या रोकने एवं समाज में कन्याओं का संतुलन बनाने ‘बेटियाँ घर की तुलसीÓ की भी प्रस्तुति के साथही वे विवाह के दौरान आठवां वचन बेटियों को बचाने की नवदंपती से लेते थे।
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