हर दो अच्छे फैसले के साथ चार इस तरह के समझौते कर लिए गए हैं, कि उससे पुराने या नए कर्मियों को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती कर दी गई है। यूनियनों ने इतना ही नहीं किया, बल्कि वे कर्मियों के सामने उनका हिमायती बने रहने कुछ विषयों को लेकर डिप्टी सीएलसी तक जा पहुंचे।
अब कर्मचारी समझौते की हकीकत खुद देखना चाहते हैं, आरोप प्रत्यारोप के बीच कर्मचारियों को किसी भी यूनियन के नेताओं की जुबानी बात पर से विश्वास उठता जा रहा है। एनजेसीएस को आरटीआई के दायरे में लाने की बात को लेकर कर्मचारी हाइकोर्ट तक जा पहुंचे हैं। श्रमिक नेता सूचना के अधिकार के तहत कर्मियों को जानकारी देने के सीएलसी के आदेश के खिलाफ 8 अगस्त 2016 को दिल्ली हाइकोर्ट में आवेदन भी किए हैं।
क्या है एनजेसीएस
सेल में कर्मियों के वेतन समझौते सहित अन्य सुविधाओं के लिए केंद्रीय स्तर पर प्रबंधन से चर्चा कर निर्णय लेने वाली समिति एनजेसीएस कहलाती है। जिसमें गठन 3 राष्ट्रीय यूनियन एटक, एचएमएस और इंटक को मिला कर हुआ था, बाद में सीटू और बीएमएस भी इसमें शामिल हुए। इस कमेटी में केंद्रीय स्तर के तीन और संयंत्र स्तर पर मान्यता प्राप्त यूनियन के 1-1 सदस्य को रखा जाता है। यह समिति सर्वसम्मति से कर्मियों के मुद्दों पर फैसला लेती है। एनजेसीएस बैठक में वोटिंग का प्रावधान नहीं होता।
सेल में कर्मियों के वेतन समझौते सहित अन्य सुविधाओं के लिए केंद्रीय स्तर पर प्रबंधन से चर्चा कर निर्णय लेने वाली समिति एनजेसीएस कहलाती है। जिसमें गठन 3 राष्ट्रीय यूनियन एटक, एचएमएस और इंटक को मिला कर हुआ था, बाद में सीटू और बीएमएस भी इसमें शामिल हुए। इस कमेटी में केंद्रीय स्तर के तीन और संयंत्र स्तर पर मान्यता प्राप्त यूनियन के 1-1 सदस्य को रखा जाता है। यह समिति सर्वसम्मति से कर्मियों के मुद्दों पर फैसला लेती है। एनजेसीएस बैठक में वोटिंग का प्रावधान नहीं होता।
कर्मियों को प्रभावित करने वाले एनजेसीएस के फैसले
सेल कर्मियों की तरफ से फैसला लेने का अधिकार रखने वाली एनजेसीएस समिति के कई फैसले ऐसे हंै, जिसका सीधा प्रभाव कर्मियों पर पड़ा है। अब कर्मचारी इसके विरोध में मुखर होकर आवाज उठा रहे हैं।
सेल कर्मियों की तरफ से फैसला लेने का अधिकार रखने वाली एनजेसीएस समिति के कई फैसले ऐसे हंै, जिसका सीधा प्रभाव कर्मियों पर पड़ा है। अब कर्मचारी इसके विरोध में मुखर होकर आवाज उठा रहे हैं।
एनजेसीएस की बैठकों में किए गए यह समझौते कर्मियों पर पड़े भारी :-
– सामान्य मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान समाप्त करना,
– बायोमैट्रिक्स से अटेंडेंस
– 25 साल के बच्चों के मेडिकल की सुविधा छीनना,
– 2014 के बाद ज्वाइन करने वाले कर्मियों की ग्रेज्युटी सील्ड होना,
– कर्मियों का ग्रेड एस-6 और ग्रेड एस-3 से डिग्रेडेशन,
– नए कर्मियों का हाउस रेंट एलाऊंस बंद करना,
– पेंशन अधिकारियों से 3 फीसदी कम अंशदान,
– नॉन वक्र्स पर स्टैंडिंग आर्डर लागू करना,
– इलेक्ट्रिक बिल और वाटर टैक्स
– 10 वर्षों पुरानी इंसेंटिव पॉलिसी
– वेतन समझौते में 3 से 5 साल तक का समय लगाना, उसे भी लागू नहीं कर पाना
– सामान्य मृत्यु पर अनुकंपा नियुक्ति का प्रावधान समाप्त करना,
– बायोमैट्रिक्स से अटेंडेंस
– 25 साल के बच्चों के मेडिकल की सुविधा छीनना,
– 2014 के बाद ज्वाइन करने वाले कर्मियों की ग्रेज्युटी सील्ड होना,
– कर्मियों का ग्रेड एस-6 और ग्रेड एस-3 से डिग्रेडेशन,
– नए कर्मियों का हाउस रेंट एलाऊंस बंद करना,
– पेंशन अधिकारियों से 3 फीसदी कम अंशदान,
– नॉन वक्र्स पर स्टैंडिंग आर्डर लागू करना,
– इलेक्ट्रिक बिल और वाटर टैक्स
– 10 वर्षों पुरानी इंसेंटिव पॉलिसी
– वेतन समझौते में 3 से 5 साल तक का समय लगाना, उसे भी लागू नहीं कर पाना