कर्मचारियों की मानें तो ट्यूब लाइटस सेट महंगी थी। क्वालिटी भी अच्छी थी। ठेका में देने से पहले 3-4 महीना पहले ही 2017 में बिजली के खंभों पर 100-150 वॉट के लगभग २ हजार ट्यूब लाइट्स स्टैंड, कवर सेट और इलेक्ट्रानिक्स चोक सहित लगवाए थे। जिसकी कीमत 1200-1500 रुपए थी। स्टोर रूम में अच्छी ट्यूबलाइट्स नहीं है। इस वजह से बेचने की आशंका जताई जा रही है।
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने निगम से पुराने पारंपरिक लाइट्स के निष्पादन की जानकारी मांगते ही अधिकारियों में खलबली मच गई है। अधिकारी खराब और अच्छी लाइट्स के आंकड़े सहित जानकारी स्टोर रूम में लाइट्स जमा करने का हवाला दिया है। ईईएसएल कंपनी को एलइडी लगाने का ठेका में देने से पहले शहर के ४७ वार्डों के बिजली के खंभों का सर्वे कराया था। जिसमें 31,800 से अधिक स्ट्रीट पोल पर सीएफएल, ट्यूब लाइट्स और पुराना सोडियम बल्ब लगे होने की जानकारी सामने आई थी।
पुराने पारंपरिक लाइट्स पर ७,८४,०७७४ किलोवॉट बिजली खपत की रिपोर्ट दी गई थी। बिल पर निगम लगभग ४६,२३७,३४७ रुपए खर्च होना बताया गया था। पुराने बल्बों के स्थान पर एलइडी लगाने से बिजली की खपत में ५० फीसदी कमी का दावा किया गया था। इसी शर्त पर निगम प्रशासन ने पुराने पारंपरिक बल्बों के स्थान पर एलईडी लगाने और सात साल तक मेंटनेंस की शर्त पर ठेका दिया गया है। नोडल अधिकारी टीके रणदीवे ने बताया कि
पुराने लाइट्स को सुरक्षित रखने और एलइडी लाइट्स लगवाने की जिम्मेदारी जोन कमिश्नर्स की थी। इसलिए जोन कमिश्नर ही बता पाएंगे कि खराब और अच्छी लाइट्स कहां है।
आयुक्त के आदेश के मुताबिक बिजली के खंभों से निकाले गए पुराने बल्बों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी नेहरू नगर, वैशाली नगर, मदर टेरेसा और वीर शिवाजी नगर और रिसाली जोन कमिश्नर की थी। कुछ अधिकारियों ने अच्छे और खराब दोनों ही लाइट्स को स्टोर में जमा करवाया। जोन से खंभे से लाइट्स निकालते ही अच्छे लाइट्स को अलग रखवाया गया। खराब बल्बों को स्टोर में भेजा गया। अब जवाब मांगे जाने पर सभी रटा रटाया जवाब दे रहे हैं कि लाइट्स राधिका नगर स्टोर में है।