नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अवर सचिव एचआर दुबे की ओर से जारी पत्र में उक्त भूखंडों व भूमि के अंतरण के लिए कलेक्टर का अधिकृत किया गया है। कलेक्टर ही इसकी क्रियान्वयन एजेंसी होगी। पत्र में लिखा है कि मध्यप्रदेश शासन के आदेश पृष्ठांकन 18 सितंबर 2000 के द्वारा 3800 वर्ग मीटर भूमि लीज पर दिए जाने के प्रतिबंध को समाप्त किया जाता है।
नगर पालिक निगम भिलाई के विभिन्न क्षेत्रों में रिक्त 1248 आवासीय व व्यावसायिक भूखंडों में फिलहाल 445 को बेचने की योजना है। अनुमान है कि इससे निगम को लगभग डेढ़ अरब रुपए की आय हो सकती है। इससे निगम कर्मियों के वेतन-भत्ते के साथ ईंधन खर्च व रोजमर्रा के जरूरी देयक जो हर महीने लगभग 9 करोड़ रुपए होता है भुगतान कर पाएगा।
इससे पहले तक वित्तीय मामले में भिलाई निगम की प्रदेश में बहुत अच्छी स्थिति थी। पिछले लगभग एक साल से ही सबकुछ गड़बड़ाया है। निगम के जानकारों और कर्मचारी नेताओं का साफ कहना है कि कोरोना व अन्य परिस्थितियों से ज्यादाअधिकारियों का वित्तीय अप्रबंधन इसके लिए जिम्मेदार है। अधिकारियों ने अपनो को खुश करने निगम का खजाना ही खाली कर दिया।
0. राज्य शासन से पैसा नहीं आने के बावजूद ठेकेदारों से काम करवाकर नगर निगम मद से भुगतान कर दिया।
0. गैर जरूरी चाजों में अनाप-शनाप और बेहिसाब खर्च किए गए।
0. वाहवाही के लिए संपत्तिकर 50 फीसदी घटा दिया गया। यहां तक कि पूर्व में भुगतान टैक्स का भी समायोजन किया गया।
0. बाजार नीलामी बंद हो गई। आय के कुछ अन्य मदों में भी कर्टौती हो गई।
0. जब से कोविड-19 का बुरा दौर शुरू हुआ है टैक्स वसूली अनियमित है।
0 शासन से बार और मुद्रांक शुल्क नहीं मिल रहा। चुंगी क्षतिपूर्ति भी अनियमित है।
नगर निगम गठन से लेकर हर दिन की वसूली का 5 फीसदी संचित निधि में जमा होते रहा है। निगम की यह अपनी पंूजी है। अब इसे भी खर्च करने की नौबत आ पड़ी है। बताया जाता है कि लगभग 80 करोड़ जमा हो गया था जिसमें 56 करोड़ ठेकेदारों को भुगतान कर दिया गया। पिछले तीन बार से कर्मियों को वेतन इसी निधि से दे रहे हैं। इससे निगम को ब्याज के रूप में लगभग एक करोड़ की आय होती उससे भी वंचित हो गया है।