संयुक्त यूनियन की खिंचाई का दिया जवाब
संयुक्त यूनियन ने ओपन एंडेड स्केल नहीं होने के लिए एनजेसीएस यूनियनों खासकर सीटू को दोषी बताया था। आरोप में कहा कि सीटू ने डेढ़ फीसदी इजाफा के लिए अकेले 30 व 31 अक्टूबर 2009 को हड़ताल किया। हड़ताल करके 1.5 फीसदी वेतन तो बढ़ा लिया, लेकिन 45 फीसदी पक्र्स की मांग को छोड़ दिया। यूनियन ने कहा कि पक्र्स के लिए नहीं, प्रबंधन के एक तरफा अडिय़ल निर्णय के खिलाफ किया गया था हड़ताल।
संयुक्त यूनियन ने ओपन एंडेड स्केल नहीं होने के लिए एनजेसीएस यूनियनों खासकर सीटू को दोषी बताया था। आरोप में कहा कि सीटू ने डेढ़ फीसदी इजाफा के लिए अकेले 30 व 31 अक्टूबर 2009 को हड़ताल किया। हड़ताल करके 1.5 फीसदी वेतन तो बढ़ा लिया, लेकिन 45 फीसदी पक्र्स की मांग को छोड़ दिया। यूनियन ने कहा कि पक्र्स के लिए नहीं, प्रबंधन के एक तरफा अडिय़ल निर्णय के खिलाफ किया गया था हड़ताल।
खोला पोल
एनजेसीएस सदस्य एसपी डे ने कहा कि उस समय हड़ताल की नोटिस में कहीं पर भी 45 फीसदी पक्र्स का उल्लेख नहीं है। उसमें लिखा था कि 31 दिसंबर 2006 को प्रभावी डीए को 68.8 फीसदी के जगह 78.2 फीसदी मानकर एमजीबी दिया जाय।
एनजेसीएस सदस्य एसपी डे ने कहा कि उस समय हड़ताल की नोटिस में कहीं पर भी 45 फीसदी पक्र्स का उल्लेख नहीं है। उसमें लिखा था कि 31 दिसंबर 2006 को प्रभावी डीए को 68.8 फीसदी के जगह 78.2 फीसदी मानकर एमजीबी दिया जाय।
क्या थी हड़ताल की वजह
उन्होंने बताया कि उस समय प्रबंधन 22 फीसदी न्यूनतम तय लाभ (एमजीबी) के लिए सहमति जता दी थी, लेकिन जब समझौता का समय आया, तब एक शीर्ष अधिकारी ने छल करते हुए यह प्रस्ताव रखा कि एमजीबी की गणना 31 दिसंबर 2006 की मूल वेतन प्लस 68.8 फीसदी डीए पर होगा। सीटू ने मांग किया कि यह गणना 78.2 फीसदी पर हो, क्योंकि सरकार के आदेश से प्रबंधन ने पहले ही 31 दिसंबर २०06 को 50 फीसदी डीए को मूल वेतन में समाहित कर दिया था। तब प्रबंधन ने प्रस्तावित एमजीबी को 22 फीसदी से घटाकर 17 फीसदी कर दिया। इस पर यूनियन व प्रबंधन में ठन गई।
उन्होंने बताया कि उस समय प्रबंधन 22 फीसदी न्यूनतम तय लाभ (एमजीबी) के लिए सहमति जता दी थी, लेकिन जब समझौता का समय आया, तब एक शीर्ष अधिकारी ने छल करते हुए यह प्रस्ताव रखा कि एमजीबी की गणना 31 दिसंबर 2006 की मूल वेतन प्लस 68.8 फीसदी डीए पर होगा। सीटू ने मांग किया कि यह गणना 78.2 फीसदी पर हो, क्योंकि सरकार के आदेश से प्रबंधन ने पहले ही 31 दिसंबर २०06 को 50 फीसदी डीए को मूल वेतन में समाहित कर दिया था। तब प्रबंधन ने प्रस्तावित एमजीबी को 22 फीसदी से घटाकर 17 फीसदी कर दिया। इस पर यूनियन व प्रबंधन में ठन गई।
चर्चा करने के बाद किया हड़ताल
इसके बाद सीटू ने हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया। अन्य यूनियनों से समर्थन नहीं मिला, तब यूनियनों के कारखाने में काम करने वाले नेताओं और कर्मियों से सीधा संवाद किया। मतदान में भारी समर्थन मिलने के बाद 30 और 31 अक्टूबर 2009 को हड़ताल किया। एनजेसीएस के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था । प्रबंधन ने इंट्रानेट के माध्यम से बिना हस्ताक्षर किए हुए एग्रीमेंट की प्रतिलिपि को प्रसारित करवाया और यह दुष्प्रचार करवाया कि 29 नवंबर को सीटू को छोड़कर अन्य सभी यूनियन नेताओं ने हस्ताक्षर कर दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि एनजेसीएस की परिपाटी के अनुसार सभी समझौते सर्वसम्मति से होते हैं।
इसके बाद सीटू ने हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया। अन्य यूनियनों से समर्थन नहीं मिला, तब यूनियनों के कारखाने में काम करने वाले नेताओं और कर्मियों से सीधा संवाद किया। मतदान में भारी समर्थन मिलने के बाद 30 और 31 अक्टूबर 2009 को हड़ताल किया। एनजेसीएस के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था । प्रबंधन ने इंट्रानेट के माध्यम से बिना हस्ताक्षर किए हुए एग्रीमेंट की प्रतिलिपि को प्रसारित करवाया और यह दुष्प्रचार करवाया कि 29 नवंबर को सीटू को छोड़कर अन्य सभी यूनियन नेताओं ने हस्ताक्षर कर दिया है, जबकि सच्चाई यह है कि एनजेसीएस की परिपाटी के अनुसार सभी समझौते सर्वसम्मति से होते हैं।
तब मिली सफलता
फरवरी 2010 में हड़ताल के फैसले को लेकर कर्मियों के बीच बातचीत शुरू की गई दी। हड़ताल की तैयारी देखकर प्रबंधन घबरा गई और ना केवल सीटू की मांग पर प्रभावी डीए को 68.8 फीसदी से बढ़ाकर 78.2 प्रतिशत किया, बल्कि 1.5 फीसदी अतिरिक्त वेतन बढ़ोतरी कराने में भी कामयाबी मिली।
फरवरी 2010 में हड़ताल के फैसले को लेकर कर्मियों के बीच बातचीत शुरू की गई दी। हड़ताल की तैयारी देखकर प्रबंधन घबरा गई और ना केवल सीटू की मांग पर प्रभावी डीए को 68.8 फीसदी से बढ़ाकर 78.2 प्रतिशत किया, बल्कि 1.5 फीसदी अतिरिक्त वेतन बढ़ोतरी कराने में भी कामयाबी मिली।