छत्तीसगढ़ मजदूर संघ के महासचिव शेख महमूद ने बताया कि लगातार दबाव के बाद प्रबंधन ने 2017 में एक नई पॉलिसी लॉकर परीक्षा फिर शुरुआत की। संयुक्त यूनियन के लगातार मांग के बाद भी प्रबंधन ने हठधर्मिता दिखाते हुए पात्र कर्मियों में मात्र 2 फीसदी कर्मियों को ही प्रमोशन दिया। वहीं पिछले 8 साल से कर्मचारियों के साथ भेदभाव होता रहा है। इस दौरान कई कर्मी प्रमोशन का इंतजार करते करते रिटायर तक हो गए।
संयुक्त यूनियन ने बताया कि 8000 कर्मचारी पिछले 10 साल में इस पक्षपात का शिकार हुए हैं। अब यह लड़ाई निर्णायक दौर पर है। कंपनी को तय करना होगा की वह किस तरह इन कर्मियों के हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति करेगी। पुरानी पॉलिसी के मुताबिक ही प्रमोशन के लिए परीक्षा तय अंतराल में होती तो अब तक एक हजार से ज्यादा कर्मियों का प्रमोशन हो चुका होता।
सर्वजीत सिंह ने कहा कि जब यह कंपटीशन सेल स्तर पर होता है तो विभाग में कर्मियों की प्रियॉरिटी लिस्ट बनाकर प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इस तरह प्रबंधन ने अपने चहेतों और पहुंच वालों को ज्यादा नंबर देते हुए लिखित परीक्षा में और अनुभव में कम अंक पाने वालों को भी ऑफिसर बनाने का काम करते है।
इस्पात श्रमिक मंच के अध्यक्ष भाव सिंह सोनवानी ने कहा कि मंच कर्मचारियों के हित की लड़ाई बिना किसी प्रोपोगेंडा के अंत तक लड़ेगा। जज की नियुक्ति नहीं होने के चलते देर हुई है, लेकिन अब उम्मीद है जल्द सुखद फैसला आएगा।