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BSP हादसा, आधी रात का मंजर और जिम्मेदारों की बेरूखी, नाम, उम्र लिखने में गलती हॉस्पिटल स्टाफ ने बरामदे में रख दिया कार्मिकों का शव

locationभिलाईPublished: Oct 11, 2018 10:43:00 am

Submitted by:

Dakshi Sahu

भिलाई स्टील प्लांट में गैस पाइप लाइन विस्फोट से 9 अक्टूबर को 12 कार्मिकों की मौत हो गई। 9 अक्टूबर की रात डेढ़ बजे पत्रिका भिलाई की टीम जब सेक्टर 9 अस्पताल पहुंची तो नजारा देखकर हैरान रह गई। जिसकी लाइव रिपोर्ट आप आगे पढ़ेंगे।

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BSP हादसा, आधी रात का मंजर और जिम्मेदारों की बेरूखी, नाम, उम्र लिखने में गलती हॉस्पिटल स्टाफ ने बरामदे में रख दिया कार्मिकों का शव

भिलाई. भिलाई स्टील प्लांट में गैस पाइप लाइन विस्फोट से 9 अक्टूबर को 12 कार्मिकों की मौत हो गई। 9 अक्टूबर की रात डेढ़ बजे पत्रिका भिलाई की टीम जब सेक्टर 9 अस्पताल पहुंची तो नजारा देखकर हैरान रह गई। जिसकी लाइव रिपोर्ट आप आगे पढ़ेंगे।
रात डेढ़ बजे बीएसपी के जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सेक्टर-9 में सन्नाटा पसरा था। कैजुअल्टी के सामने लोगों की भीड़ थी। बरामदे में सफेद कपड़े से लिपटे दो शव स्ट्रेचर पर रखे हुए थे। शव पर बिलखते परिजनों की चीत्कार और रुदन ही स्याह, रात के सन्नाटे को चीर रही थी।
हेल्प सेंटर की ओर चले जाते
एक शव पोर्च पर रखा था। ढंके सफेद कपड़े पर सीने के पास टैग से बंधे कागज के टुकड़े पर उनका नाम और उम्र लिख था। भीड़ में से कुछ लोग आते जो शोक संतप्त परिवार के हितु लग रहे थे, पढ़ते और फिर हेल्प सेंटर की ओर चले जाते।
सेंटर में कुछ लोग थे जो गुस्से से तमतमाए हुए थे। बीएसपी के मेडिकल स्टाफ से उनकी बहस हो रही थी। अपनों को खोने का गम और प्रबंधन की इंसानियत को शर्मशार कर देने वाली प्रबंधन की व्यवस्था से त्रस्त गमगीन चेहरे और लडख़ड़ाती जुबां से दर्द के कुछ शब्द फूटे तो माजरा साफ समझ में आ गया।
उम्र मेल नहीं खा रहे
कोक ओवन हादसे में मारे गए असिस्टेंट मैनेजर डीके चौहान और दिनेश कुमार मौर्या का शव रात दस बजे से सिर्फ इसलिए रोककर रखा गया था कि हॉस्पिटल की पर्ची से उनके वास्तविक नाम और उम्र मेल नहीं खा रहे थे। डीके की जगह पीके लिखा हुआ था।
अंग्रेजी में चौहान की स्पेलिंग सीएचएयू की जगह सीएचओयू लिखा था। उनकी 52 की उम्र 40 कर दिया था। इसी तरह दिनेश कुमार मौर्या के शव पर टंगी पर्ची में दिनेश मौर्या और उम्र 46 के बजाए 40 लिखी हुई थी।
परिजन ने यह त्रुटि सुधारने कहा ताकि आगे किसी तरह की परेशानी न हो। घंटे भर इंतजार के बाद भी जब नहीं सुधरा तो कुछ लोग आइसीयू के डॉक्टर व नर्सिंग स्टाफ से मिलने गए। वहां ग्रिल बंद कर दी। कोई किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं हुआ।
युवक का धैर्य जवाब दे गया
हेल्प सेंटर में कार्मिक विभाग के एक अधिकारी को भेजा गया था, लेकिन लोगों का गुस्सा देखते हुए वह भी कहीं दुबक गया और बाहर ही नहीं निकला। तब तक रात के 2 बज चुके थे। तब भीड़ में से एक युवक का धैर्य जवाब दे गया। उसने ठीक 2 बजकर 2 मिनट पर सीईओ एम रवि को फोन लगाकर इस अव्यवस्था की जानकारी दी।
मंै आपको हड़का नहीं रहा
सीईओ ने क्या कहा यह तो नहीं मालूम, लेकिन युवक ने जवाब में यह जरूर कहा कि मैं आपको हड़का नहीं रहा हंू। इतने बड़े हादसे के बाद आपका प्रबंधन मृत कर्मियों के परिजन के साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, यह बता रहा हंू। तब भी हॉस्पिटल स्टाफ को अपनी यह गलती सुधारने में साढ़े चार घंटे लग गए। इसके बाद दोनों शव को निजी अस्पताल की मॉच्र्युरी ले जाया गया। तब रात के ढाई बज चुके थे।
दिनेश की बेटी और बेटा शव के सामने से जरा भी नहीं हट रहे हैं। अभी ज्यादा उम्र नहीं है उनकी। दोनों किशोरवय ही होंगे। बार-बाद दोनों शव पर हाथ फेर रहे थे। कई बार उनके हाथ सिर के पास लगी गांठ पर जाकर अटक जाती थी। मानों उन्हें लग रहा हो कि ये गांठ खोल दंू तो मेरे पापा अभी जाग जाएंगे। बीच- बीच में सिसकियां और पापा… पापा.. कहकर रोने की आवाज आती रहती है।
एक टक निहारती रही
दिनेश कुमार मौर्य का शव बरामदे में हेल्प सेंटर के ठीक सामने स्टे्रचर पर रखा हुआ है। सामने उनकी पत्नी स्ट्रेचर के बगल में ही खड़ी-खड़ी रो रही है। बाद में सीआइएसएफ के एक जवान ने उन्हें बेंच पर बैठाया। कुछ ही मिनट हुए कि स्ट्रेचर के बगल में आकर फिर खड़ी हो गईं। पथराई आंखों से अपने पति के शव को एकटक निहारती रहीं।
साढ़े चार घंटे बाद जब शव को ले जाने की पारी आई तो दिनेश की बूढ़ी मां रोती-बिलखती आईसीयू कक्ष की तरफ से आई। साथ में परिजन थे जो उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थे। स्ट्रेचर के सामने वह गिर गई और जमीन पर ही लोट-लोटकर रोने लगी। मेरे बेटे को कहां ले जा रहे हो… मेरे बेटे को मत ले जाओ।

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