नगर पालिक निगम भिलाई की ओर से वर्ष 2015 में 70 वार्डों का परिसीमन किया गया था। इसे चुनौती देते हुए रामजीत सिंह, अली हुसैन सिद्दीकी और देवेंदर सिंह भाटिया ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। इस पर न्यायालय ने 18 अप्रैल 2017 के अपना फैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित युगल पीठ ने कहा कि वार्डों के परिसीमन में छग नगर पालिक निगम एक्ट 1956 की धारा 10 और छग नगर पालिक (वार्डों का विस्तार) नियम 1994 के नियम-3 में उल्लेखित प्रावधानों का उल्लेख करते हुए समय-समय पर परिसीमन किया जाए। भिलाई और रिसाली नगर निगम के परिसीमन में न्यायालय के इस फैसले की अवमानना की गई है।
छग नगर पालिक निगम एक्ट 1956 की धारा 10 में साफ लिखा है कि प्रत्येक वार्ड की जनसंख्या यथासाध्य पूरे नगर के वार्डों में एक जैसी होगी।
छग नगर पालिक (वार्डों का विस्तार) नियम 1994 के नियम-3 के अनुसार वार्डों की सीमाओं के निर्धारण का प्रस्ताव कलेक्टर की ओर से तैयार किया जाएगा।
मानचित्र में प्रत्येक प्रस्तावित वार्ड की चारों सीमाओं को इस तरह दर्शाया जाए कि सीमाएं स्पष्ट रूप से अलग-अलग दिखे।
जनगणना के प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार निगम क्षेत्र की कुल जनसंख्या, एससी एसटी की कुल जनसंख्या और वार्डों की कुल संख्या का औसत।
प्रत्येक प्रस्तावित वार्ड की जनसंख्या तथा उसमें एससी, एसटी की जनसंख्या के आंकड़े।
भिलाई नगर निगम के पूर्व महापौर प्रत्याशी व पार्षद बशिष्ठ नारायण मिश्रा ने नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के सचिव, सहायक संचालक, संभागायुक्त, स्थानीय निर्वाचन राज्य छग, कलेक्टर और भिलाई व रिसाली नगर निगम के आयुक्तों से इसकी शिकायत की है। बशिष्ठ ने कहा है कि यह उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना है। प्रावधानों को दरकिनार कर परिसीमन का प्रस्ताव तैयार करने वाले दोषी अधिकारियों को निलंबित किया जाए। अन्यथा वे अवमानना की याचिका उच्च न्यायालय में दायर करेंगे।