हरित प्रदेश:शहर का ये जगह बनेगा टॉल प्लांट,मिलेगा फलदार और औषधीय पौधे
तालपुरी स्थित जैव विविधता पार्क की फलदार पौधों की नर्सरी के नाम से जाना जाएगा। वन विभाग ने तालपुरी रुआबांधा स्थित जैव विविधता पार्क में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)के तहत केवल फलदार और औषधीय पौधे तैयार करने की योजना बनाई है। योजना के मुताबिक विभाग ने काम शुरू भी कर दिया है।

भिलाई.तालपुरी स्थित जैव विविधता पार्क की फलदार पौधों की नर्सरी के नाम से जाना जाएगा। वन विभाग ने तालपुरी रुआबांधा स्थित जैव विविधता पार्क में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)के तहत केवल फलदार और औषधीय पौधे तैयार करने की योजना बनाई है। योजना के मुताबिक विभाग ने काम शुरू भी कर दिया है। पिछले दो महीने में 40 मजूदरों की टीम ने पौधों के लिए क्यारी तैयार कर लिया है। 18500 प्लास्टिक के दोना में डाली गई फलदार पौधों के बीज अंकुरित हो गए हैं। इसी तरह से यहां 50 हजार पौधे तैयार किए जाएंगे। साथ ही जैव विविधता पार्क में पौधे रोपे जाएंगे।
दो साल तक करेंगे देखभाल
पौधों की दो साल तक नर्सरी में ही देखभाल किया जाएगा। जब पौधा 5-6 फीट उंचा हो जाएगा। तब उन्हें रोपने के लिए दुर्ग और बेमेतरा जिले में ट्रांसपोर्ट किया जाएगा। पौधों को शिवनाथ और खारून नदी के किनारे रोपे जाएंगे। विभाग के फारेस्ट इंस्पेक्टर संजय भट्ट का कहना है कि छोटे पौधों को ट्रांसपोर्ट करने में दिक्कत आती है। नदी के किनारे रोपने के बाद बाढ़ में नुकसान होने की आशंका बनी रहती है। छोटे पौधों को ज्यादा दिन तक देखभाल करना पड़ता है। इसलिए पौधो को 5-6 फीट बड़ा करने के बाद लगाने का निर्णय लिया है।
इन फलों के पौधे
नर्सरी में आंवला, अमरूद, जामुन, आम, कटहल, बादाम, सत्तू, हल्दू, धावड़ा, अमलतास, कहवा, मुंडी के 50 हजार पौधे तैयार किया जाएगा। जैसे-जैसे पौधे बड़े होते जाएंगे। उन्हें परिवहन कर खारून और शिवनाथ नदी के किनारे रोपे जाएंगे। वन विभाग ने शिवनाथ नदी के किनारे से सिमगा घाट से लेकर दुर्ग जिले की सीमा में रोपे जाएंगे। इसी तरह खारुन नदी के दोनों किनारे पौधे लगाया जाएगा।
मिट्टी का कटाव रूकेगा
वन विभाग के एसडीओ डीके सिंह ने बताया कि नदी के किनारे वाले गांवों में 5-6 फीट के फलदार लगाने का निर्णय लिया है। ताकि रोपने के बाद पौधे जल्द तैयार हो सके। गांव वालों को उनका फल मिले। जब उन्हें फल मिलेगा। तो पौधों के प्रति उनका जुड़ाव बनेगा। फिर गांव के लोगों की समिति बनाकर बगीचा को सौंप दिया जाएगा। फलों को मार्केट में बेचने पर उनकी आमदनी होगी। गांव में हरियाली आएगी। नदी किनारे की मिट्टी का कटाव रूकेगा।
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