महंगे बे्रल लिपि (Braille lipi paper) पेपर खरीदने में अक्षम नेत्रहीन छात्रों के लिए उसने ऐसी नोट्स तैयार कर दी, जिससे उसके स्कूल के सहपाठी से लेकर जूनियर्स भी आसानी से अपनी पढ़ाई कर पाएंगे। भिलाई के नयनदीप स्कूल में दसवीं की छात्रा सुरभि की यह कोशिश चिराग सी साबित होगी जो महंगे ब्रेल पेपर के बदले रद्दी अखबारों के जरिए अपने लिए ब्रेल की बुक तैयार कर सकते हैं।
सुरभि ने बताया कि उसने नोट्स तैयार कर अपने टीचर्स को दे दिए हैं, ताकि छात्रों को जब भी जरूरत पड़े वह इन नोट्स के सहारे परीक्षा की तैयारी कर सकता है। वह चाहती है कि अन्य कक्षाओं के लिए भी वह नोट्स तैयार करें ताकि दूसरे छात्रों को भी मदद मिल सके। आंखों से नजर नहीं आता, लेकिन सुरभि में सोचने-समझने की क्षमता तो सामान्य बच्चों जैसी ही है। ऐसे में सिर्फ एक कमी के कारण वह दूसरों से अलग क्यों रहे। वह बताती है कि म्यूजिक के साथ-साथ वह डांस भी करती है, ताकि उसकी प्रतिभा भी निखर सकें।
सुरभि बताती हैं कि उसने आठवीं तक की पढ़ाई पुरैना रायपुर स्थित सरकारी स्कूल से की। जहां ब्रेल लिपि में पढ़ाई कराई जाती थी। यहां हालात यह थे कि प्रैक्टिस के लिए रोज ब्रेल शीट नहीं मिलती थी। वहां के टीचर्स ने लोगों के यहां से रद्दी अखबार जुटाकर उसके चार फोल्ड कर उसमें प्रैक्टिस कराना शुरू किया। तब से उसे इसमें नोट्स बनाने की आदत पड़ गई थी। जब वे नयनदीप स्कूल में आई तो यहां पाया कि बोर्ड क्लास की नोट्स नहीं है।
अगर वह ब्रेल पेपर खरीदने जाएगी तो महंगे मिलेंगे और स्कूल में भी एक लिमिट के बाद पेपर नहीं दिया जाता। ऐसे में उसने घर पर ही पुराने अखबारों के जरिए उसमें स्टाइलिश की मदद से नोट्स बनाना शुरू किया। मात्र एक महीने के भीतर ही उसने हिन्दी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और म्यूजिक की नोट्स तैयार कर ली।
सुरभि बताती है कि जब से उसने ब्रेल में पढ़ाई शुरू की, वह पुराने अखबार में ही प्रैक्टिस करती है,क्योंकि वह चाहकर भी ब्रेल के पेपर नहीं खरीद सकती। क्योंकि उसके पिता शंभू चंद्रवंशी फेरीवाले हैं, जबकि मां रीना देवी दुर्ग नगर निगम में सफाईकर्मी है। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से उसने हमेशा ऐसे ही जुगाड़ के जरिए अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाया।