बीएसपी के करीब 5,000 आवासों पर अतिक्रमण कर लोग रह रहे हैं। इसके बदले वे न तो बिजली बिल दे रहे हैं और न किराया। इसके साथ-साथ पानी मुफ्त में ले रहे हैं। एक ओर मंत्री का इशारा मिलते ही बोकारो में तोडफ़ोड़ टीम ने बुधवार से ही कब्जे के 3,200 आवासों को खाली कराने मुहीम छेड़ दी। जिसको लेकर सोशल मीडिया में उनको ढेर सारी बधाइयां मिल रही हैं। दूसरी ओर बीएसपी के अधिकारी इस मामले में पिछड़ रहे हैं। यहां हालात उससे भी खराब हैं।
बीएसपी की सुरक्षा के लिहाज से अनजान लोगों का संयंत्र के आवासों में आकर बसना खतरे की घंटी है। पुलिस विभाग ने बीएसपी आवासों पर किराए व कब्जा कर रहने वालों से पहचान पत्र मांगा था। यहां रहने वाले किसी भी किराए वाले ने अपना पहचान पत्र जमा नहीं किया। असल में वे कब्जा कर रह रहे हैं। जिसको राशि दी जा रही है, वह उनको बदले में किसी तरह का किरायानामा नहीं दे सकता। तब मजबूरी है कि चुपचाप कब्जे वाले आवास में जमे रहो। आवासों को अनफिट बताने के बाद उस पर कम से कम 5 साल तक लोग रह लेते हैं।
देश का पड़ोसी मुल्क से जब तनाव चल रहा है, तब देश में आतंकवादियों का मूवमेंट होना कोई बड़ी बात नहीं है। बीएसपी के आवासों को जिस तरह से धड़ल्ले से कब्जा कर लोग एक दूसरे को किराए पर दे रहे हैं। उससे यह तय है कि पहले माओवादियों के संदेह में धरपकड़ हो चुकी है और आने वाले समय में इससे भी खतरनाक हालात बन सकते हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान बीएसपी को हो सकता है।
नगर सेवाएं विभाग में बैठे अधिकारी अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने से बचने के लिए नेताओं के नाम का उपयोग दबी जुबान से करते हैं। पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी, तब उनके नाम को आगे कर देते थे। अब कांग्रेस नेताओं के नाम पर कार्रवाई नहीं की जाती। असल में टाउनशिप के आवासों पर रहने वालों को हटाने जाने से वे विभाग के लोगों का ही नाम बताते हैं, जो कब्जा करने चाबी दिए हैं। इसकी लिखित शिकायत पार्षद राजेश चौधरी ने नगर सेवाएं विभाग से किए हुए है।
बीएसपी अनफिट आवासों से कब्जेधारियों को आसानी से खाली करवा सकता है। इसके लिए बीएसपी का नियम है कि आवासों से बिजली व पानी कनेक्शन काटा जाए। दरवाजे भी निकाल लें, फिर आवासों को ढहा दिया जाए। विभाग आवास खाली होते ही उसे डी में डालकर छोड़ देता है। इसे बीच के लोग किराए पर चढ़ा देते हैं।