2015 में जन्में राम और श्याम
मैत्रीबाग में दोनों शावक सितंबर 2015 में जन्मे। यह गंगा और सतपुड़ा की संतान हैं। जख्मी होने के बाद भी दोनों का ग्रोथ बेहतर बढ़ा। मैत्रीबाग प्रबंधन ने 3 अक्टूबर 2016 के बाद से इनको पिंजरा नंबर-6 में इसे शिफ्ट किया था। पर्यटकों की नजरों से दूर इनको अलग से पिंजरे के भीतर ही रखा जाता रहा है। अब उसमें से एक की मौत हो गई है।
ब्रीडिंग के लिए है स्वस्थ्य
राम व श्याम को सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया का गाइड लाइन के मुताबिक डिसेबल्ड वन्य प्राणियों को पर्यटकों को दिखाने केज पर नहीं रखा जाता। इस वजह से दोनों को अलग से पिंजरे में रखा जा रहा था। जू में इनको ब्रीडिंग के लिए उपयोग कर सकते हैं। इसमें भी रिस्क की बात कही जाती है।
मां के हमले से हुए थे दोनों शावक घायल
मैत्रीबाग में सितंबर के प्रथम सप्ताह में जन्म लिए सफेद बाघ के दो शावकों पर उनकी मां ने ही 20 सितंबर 2015 को हमला कर दिया था। जिसमें दोनों शावक घायल हो गए थे। दोनों के सामने के एक-एक पैर को मां ने ही डैमेज कर दिया था। खून अधिक निकलता देख, दोनों बच्चों को मां से अलग केज में रखा गया। इसके बाद उनकी परवरिश प्रबंधन ने खुद ही किया। बच्चों को दूध पिलाने की जवाबदारी भी जू ने अपने जिम्मे ले ली। मासूम दोनों शावकों के सामने के पैर नहीं होने के बाद भी बेहतर उपचार व खुराक देकर बड़ा किया गया।
किया सिंह के केज में शिफ्ट
16 दिसंबर 2015 को मैत्रीबाग प्रबंधन ने जख्मी दोनों शावकों को पिंजरा क्रमांक-4 से निकालकर 6 में शिफ्ट कर दिया। यहां भी वे भीतर के कमरे में रखे गए, ताकि उनको कोई दूसरा बाघ नुकसान न पहुंचा सके। तब से पर्यटकों से दूर वहीं थे। जिसमें से एक ने अब दम तोड़ दिया है।
कुनबा को 2 से बढ़ाकर किए थे 22
सोवियत रूस और भारत की मैत्री का प्रतीक मैत्रीबाग है, जिसे 1972 में शुरू किए थे। यहां उड़ीसा के नंदन कानन, भुवनेश्वर से सफेद टाइगर तरुण व ताप्ती को 1997 में लेकर आए थे। बेहतर बीडिंग की वजह से यह संख्या से बढ़कर 22 तक पहुंची थी। मैत्रीबाग में हर साल 12 लाख से अधिक पर्यटक आते हैं, इन टाइगर्स को देखने। अब धीरे-धीरे इनकी संख्या ही कम होते जा रही है।
पीएम रिपोर्ट आने पर मौत की वजह होगी स्पष्ट
डी गनवीर, डीएफओ, दुर्ग ने बताया कि प्रबंधन बता रहा है कि वाइट टाइगर पहले से बीमार था, अब उसका पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आने पर साफ होगा कि आखिर मौत कैसे हुई है।