कोरोनाकाल में कर रहे 14 घंटे काम
एस मोनू ने बताया कि वे सुबह करीब 9 बजे मुक्तिधाम पहुंच जाते हैं। इसके बाद लौटने का तय नहीं होता। अक्सर रात में ९ बजे काम पूरा कर निकलने की तैयारी करते हैं। तब भी शव लेकर वाहन पहुंच जाती है। जिसकी वजह से कई बार रात 10 बजे के बाद वहां से निकलते हैं। इतना ही नहीं अप्रैल में कई बार रात 11 बजे के बाद घर के लिए लौटे हैं। सालभर से कोई अवकाश नहीं लिए हैं, अगर किसी दिन तबीयत थोड़ी खराब लगे, तब भी आराम नहीं कर सकते। यहां संक्रमितों के शव को परिवार के सदस्य छूने से कतरा रहे हैं। तब और कोई कैसे इस काम को करेगा। पूरी जिम्मेदारी तीनों पर ही है।
नहीं हुआ 50 लाख का बीमा
धन्नूलाल जांगड़े ने बताया कि अस्पताल में काम करने वालों का कोरोनाकाल में सरकार 50 लाख का बीमा कर रही है। वे तमाम सुरक्षा के बीच रहते हैं। इसके बाद भी सरकार उनके परिवार को लेकर चिंतित है। वहीं यहां एक शव का पीपीई किट पहनकर काम करने के बाद दूसरे शव का अंतिम संस्कार करने के लिए पीपीई किट का इस्तेमाल गर्मी के बीच नहीं किया जा सकता। तब रिस्क लेकर मास्क और ग्लब्स के सहारे इस काम को अंजाम देते हैं। शव को एंबुलेंस उतारना, चिता में रखकर सजाना और इसके बाद अंतिम संस्कार करना। इस दौरान अगर संक्रमित हो गए तब क्या होगा। परिवार सड़क पर आ जाएगा, इसकी चिंता सरकार को करनी चाहिए। मुक्तिधाम में काम कर रहे कर्मियों का भी बीमा सरकार को करवाना चाहिए। वे भी इंसान है।
मिले कलेक्टर दर पर वेतन
टेकचंद साहू ने बताया कि वे दिहाड़ी मजदूर की तरह काम कर रहे हैं। कलेक्टर दर पर वेतन दिया जाना चाहिए। जिस तरह से एक दिन में 50-50 शव का अंतिम संस्कार किए हैं। यह काम कोई दूसरा व्यक्ति कर सकता है क्या। इसके बाद भी वेतन के मामले में शासन की ओर से कोई नरम रुख नहीं है। पिछले ठेकेदार ने दो माह का वेतन भी नहीं दिया।
वैक्सीनेशन भी नहीं
जिला प्रशासन ने जिनके जिम्मे में कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार का जिम्मा सौंपा है। उन मजदूरों को कोरोना वारियर मानते हुए कम से कम कोरोना का टीका लगाया जाना था। वह भी अब तक नहीं किया गया है। वे लोग जो हर दिन इस हाई रिस्क जोन में पूरा दिन बिताते हैं, उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है। यह वे लोग हैं जो पिछले 365 दिनों से लगातार बिना छुट्टी के काम कर रहे हैं।