पिछले साल से अधिक उत्पादन करने का है भरोसा
भिलाई इस्पात संयंत्र को पिछले साल वित्त वर्ष 2018-19 में 12,00,000 टन रेल पटरी आपूर्ति करने का आर्डर मिला था। तब दोनों मिल ने मिलकर 9,75,000 टन रेलपांत का उत्पादन किया था। पुराने रेल मिल आरएसएम ने 6,50,000 टन रेल पटरी का उत्पादन किया था। वहीं यूआरएम ने 3,25,000 टन रेल पटरी का उत्पादन किया। बीएसपी १० लाख टन से 25 हजार टन पीछे रह गया था। इस बार पिछले साल से बेहतर उत्पादन करने की कोशिश की जा रही है।
नए व पुराने मिल पर जिम्मेदारी का भार
बीएसपी में रेल पटरी का उत्पादन करने का भार पुराने रेल स्ट्रक्चरल मिल (आरएसएम) और नए यूनिवर्सल रेल मिल (यूआरएम) पर है। यूआरएम में युवा टीम लगी है। वहीं पुराने मिल में पुरानी टीम पसीना बहा रही है। बीएसपी प्रबंधन कम से कम 14,00,000 टन रेल पटरी का उत्पादन करना चाहती है। इसके लिए इस वित्त वर्ष में यूआरएम को 7,00,000 टन लांग्स रेलपांत उत्पादन करना होगा। वहीं आरएसएम को 7,00,000 टन रेलपांत उत्पादन करना है।
आयरन ओर फाइंस की कमी
बीएसपी में आयरन ओर फाइंस की आपूर्ति पहले राजहरा से हो रही थी। अब इसे सेल के रॉ मटेरियल डिविजन (आरएमडी) से ले रहे हैं। जिससे बीएसपी के उत्पादन कॉस्ट में इजाफा हो गया है।
बंद पड़े हैं दो-दो फर्नेस
बीएसपी के दोनों मिल यूआरएम व आरएसएम से उत्पादन तब अधिक हो पाएगा, जब ब्लास्ट फर्नेस से अधिक हॉट मेटल का उत्पादन हो सके। बीएसपी के ब्लास्ट फर्नेस-1, 6, 7, 8 से हॉट मेटल का उत्पादन हो रहा है। ब्लास्ट फर्नेस-4,5 बंद कर लंबे समय से मरम्मत में लिए हैं। जिसकी वजह से रूटीन में ब्लास्ट फर्नेस से होने वाले कुल उत्पादन का औसत 12 से 14 हजार टन के आसपास है।
वेतन समझौता नहीं होने से निराश हैं कर्मचारी
भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मचारियों को 7 सितंबर 2019 का इंतजार था। जब इस बैठक में सेल चेयरमैन से साफ शब्दों में मंदी का जिक्र करते हुए वेतन समझौते पर चर्चा ही नहीं किया, तब कर्मचारी मायूस हो गए। अब वे ड्यूटी आ रहे हैं, लेकिन काम को लेकर जो पहले उत्साह था, वह देखने को नहीं मिल रहा है।
कटौती की मार
बीएसपी कर्मचारियों पर कटौती की मार लंबे समय से पड़ रही है। कर्मचारियों को वर्तमान बेसिक पर हाऊस रेंट एलाउंस (एचआरए) नहीं दिया जा रहा है। छुट्टी के नकदीकरण का मामला भी ठंडे बस्ते में है। इसके साथ-साथ इंसेंटिव का रिवीजन नहीं किया जा रहा है। बीएसपी के 16,400 कर्मचारी इस वजह से कटौती की मार झेल रहे हैं।