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बीएसपी ने दो दशक पहले खरीदी एक करोड़ की मशीन, खा रही धूल, दूसरी भी ले आए

locationभिलाईPublished: May 19, 2019 10:44:55 am

Submitted by:

Abdul Salam

बीएसपी ने दो दशक पहले एक मशीन खरीदी, वह तब से खा रही है धूल। फिर एक वैसी मशीन खरीद ले आए।

BHILAI

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भिलाई. भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन का पर्चेस विभाग प्लांट को अपग्रेड करने के लिए लगातार आधुनिक मशीन खरीद रहा है। एसपी-3 में भी प्रबंधन ने दो दशक पहले एक मशीन खरीदी, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपए है। वह मशीन तब से धूल खा रही है। बीएसपी के आला अधिकारियों ने फिर एक बार वैसी मशीन खरीद लिए हैं। अब वह भी बिना काम के रखी हुई है। एक ओर प्रबंधन खर्च में तमाम तरह की कटौती करता है, दूसरी ओर इस तरह की मशीन लेकर आता है, जो लंबे समय तक पड़े धूल ही खाते रहते हैं। कभी उनका उपयोग बाउंड्रीवाल के तौर पर कर लेते हैं तो कभी वैसे ही छोड़े देते हैं।
यहां लगाने लिए थे मशीन
बीएसपी के सिंटर प्लांट-३ के मशीन-1 को स्थापित करते समय 19 साल पहले करीब एक करोड़ की ग्रेन्युलेटर मशीन खरीदी गई थी। इस मशीन का उपयोग तब से अब तक नहीं किया जा सका है। मशीन को लगाकर छोड़ दिया गया है। इससे अब तक प्रबंधन ने कोई काम नहीं लिया है।
मशीन करती है यह काम
बीएसपी के सिंटर प्लांट में सिंटर का उत्पादन करने के दौरान लगातार उसका डस्ट एकत्र होता रहता है। इस मशीन के सहारे इस डस्ट का गोली बनाते हैं। इसके बाद इस गोली का उपयोग फिर से सिंटर मशीन में किया जाता है। इस तरह डस्ट से फिर सिंटर का उत्पादन किया जा सकता है। बड़ी संख्या में यहां डस्ट एकत्र होता है, इस वजह से इस मशीन की अहमियत एसपी-3 में बहुत अधिक है। डस्ट का उपयोग होने लगे, तो सिंटर का उत्पादन भी बढ़ जाएगा।
एक पड़ी है, दूसरी ले आए
बीएसपी के पास पहले से ही एक ग्रेन्युलेटर मशीन पड़ी है, अब दूसरी भी ले आए। नई मशीन का भी उपयोग नहीं किया जा रहा है। इस तरह से प्रबंधन मशीन का उपयोग कर नहीं पा रहा है या बिना जरूरत की मशीन को मोटी रकम देकर बिना वजह खरीद रहा है। यह सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। संयंत्र में दो-दो कीमती मशीन रखी हुई है।
ऑटोमैशन के स्थान पर कर रहे मैनुअल काम
एसपी-3 में मशीन-1 और 2 में आधुनिक उपकरण लगाए गए हैं। इस तरह बहुत से काम मशीन को अपने आप खुद ही करना है। प्रबंधन ने यहां कई काम को बायपास कर किया है, जिससे ऑटोमैशन के स्थान पर मैनुअल ही काम किए जा रहे हैं। यही वजह है कि कम कर्मियों से अधिक काम का फॉर्मूला यहां ठीक नहीं बैठ रहा है।
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