बेटे की उम्र थी 17
बीएसपी कर्मचारी की पत्नी ने बताया कि 6 फरवरी 2010 को पति की मौत हो गई। बेटे की उम्र उस समय महज 17 साल थी। आवेदन देने पर बीएसपी प्रबंधन ने कहा कि अभी नाबालिग है, जब बालिग होगा, तब नौकरी दिया जाएगा।
बीएसपी कर्मचारी की पत्नी ने बताया कि 6 फरवरी 2010 को पति की मौत हो गई। बेटे की उम्र उस समय महज 17 साल थी। आवेदन देने पर बीएसपी प्रबंधन ने कहा कि अभी नाबालिग है, जब बालिग होगा, तब नौकरी दिया जाएगा।
ईएफबीएस का लाभ … ?
पीडि़त परिवार ने ईएफबीएस स्कीम का लाभ नहीं लिया। जिसके कारण उनको पति की मौत के बाद बेसिक व डीए भी नहीं मिला। परिवार बेटे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए बालिग होने का इंतजार किए।
पीडि़त परिवार ने ईएफबीएस स्कीम का लाभ नहीं लिया। जिसके कारण उनको पति की मौत के बाद बेसिक व डीए भी नहीं मिला। परिवार बेटे की अनुकंपा नियुक्ति के लिए बालिग होने का इंतजार किए।
बालिग हुआ तो गए नौकरी मांगने
मां ने बताया कि बेटा बालिग हुआ तो अनुकंपा नियुक्ति के लिए 29 जून 2012 को प्रबंधन के पास गए। जहां उन्होंने कहा कि 6 माह के भीतर आवेदन करना था। देरी से आए हो नहीं मिलेगी अब नौकरी। इस पर परिवार ने 26 अक्टूबर 2009 को दिए हुए पत्र की कॉपी दिखाया।
मां ने बताया कि बेटा बालिग हुआ तो अनुकंपा नियुक्ति के लिए 29 जून 2012 को प्रबंधन के पास गए। जहां उन्होंने कहा कि 6 माह के भीतर आवेदन करना था। देरी से आए हो नहीं मिलेगी अब नौकरी। इस पर परिवार ने 26 अक्टूबर 2009 को दिए हुए पत्र की कॉपी दिखाया।
लगवाया चक्कर
बीएसपी के भर्ती विभाग ने इसके बाद पीडि़त परिवार को प्रयास करने की बात कहकर चक्कर लगवाया। पीडि़त परिवार ने बताया कि लगातार दफ्तर जाते रहे, लेकिन प्रबंधन अलग-अलग वजह बताकर लौटाता रहा। पीडि़ता ने बताया कि पूछने पर सोनम ने बताया कि तमाम दस्तावेज भर्ती विभाग को भेज दिया गया है। जब भर्ती विभाग से पूछा गया, तो वहां के विकास चंद्रा ने बताया कि कोई दस्तावेज नहीं मिला है। तीन साल तक वे इस विषय पर चक्कर लगाते रहे।
बीएसपी के भर्ती विभाग ने इसके बाद पीडि़त परिवार को प्रयास करने की बात कहकर चक्कर लगवाया। पीडि़त परिवार ने बताया कि लगातार दफ्तर जाते रहे, लेकिन प्रबंधन अलग-अलग वजह बताकर लौटाता रहा। पीडि़ता ने बताया कि पूछने पर सोनम ने बताया कि तमाम दस्तावेज भर्ती विभाग को भेज दिया गया है। जब भर्ती विभाग से पूछा गया, तो वहां के विकास चंद्रा ने बताया कि कोई दस्तावेज नहीं मिला है। तीन साल तक वे इस विषय पर चक्कर लगाते रहे।
श्रम विभाग का खटखटाया दरवाजा
पीडि़त परिवार ने श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया, तो वहां बीएसपी प्रबंधन व पीडि़त परिवार में सुलह नहीं हो सकी। तब डिप्टी सीएलसी ने इसे फेल कर ट्रिब्यूनल में केस ट्रांसफर किया।
पीडि़त परिवार ने श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया, तो वहां बीएसपी प्रबंधन व पीडि़त परिवार में सुलह नहीं हो सकी। तब डिप्टी सीएलसी ने इसे फेल कर ट्रिब्यूनल में केस ट्रांसफर किया।
बेहतर होता नहीं लेते शव
पीडि़ता ने कहा कि यह मालूम होता कि जिस बीमारी को सेल प्रबंधन ने पूरी तरह अनफिट में रखा है। इसके पीडि़त के जीने के दौरान ही आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। तब भी प्रबंधन कर्मचारी की जान जाने के बाद भी नरम नहीं पड़ रहा है। अब मजबूरी में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। इससे बेहतर होता कि शव को लेते ही नहीं।
पीडि़ता ने कहा कि यह मालूम होता कि जिस बीमारी को सेल प्रबंधन ने पूरी तरह अनफिट में रखा है। इसके पीडि़त के जीने के दौरान ही आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है। तब भी प्रबंधन कर्मचारी की जान जाने के बाद भी नरम नहीं पड़ रहा है। अब मजबूरी में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। इससे बेहतर होता कि शव को लेते ही नहीं।
टूट रहा प्रबंधन से विश्वास
बीएसपी प्रबंधन से कर्मियों का विश्वास धीरे-धीरे टूट रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के मसले पर प्रबंधन का रुख हमेशा परेशान करने वाला होता है। जिसकी वजह से परिवार कभी समाज, तो कभी न्यायालय का रुख करता है।
बीएसपी प्रबंधन से कर्मियों का विश्वास धीरे-धीरे टूट रहा है। अनुकंपा नियुक्ति के मसले पर प्रबंधन का रुख हमेशा परेशान करने वाला होता है। जिसकी वजह से परिवार कभी समाज, तो कभी न्यायालय का रुख करता है।