पीसीसी अध्यक्ष भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। कांग्रेस ने भूपेश के नेतृत्व में चुनाव लड़कर लगातर 15 साल से शासन कर रही भाजपा से सत्ता छीन ली है। अवभिाजित मध्यप्रदेश में 1998 में दिग्विजय सरकार में परिवहन मंत्री थे। राज्य विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ में जोगी सरकार में राजस्व मंत्री व वर्ष 2003 से 2008 तक उप नेता प्रतिपक्ष रहे। पाटन से यह उनकी पांचवीं जीत है।
सांसद व कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। साहू अविभाजित मध्यप्रदेश में पाठ्य पुस्तक निगम के उपाध्यक्ष रहे। वर्ष 1998 में पहली बार विधायक बने। राज्य विभाजन के बाद जोगी सरकार में स्कूल शिक्षा और विद्युत राज्य मंत्री रहे। वर्ष 2003 में धमधा और 2008 में बेमेतरा के विधायक रहे।
अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मंत्री और बाद में नेता प्रतिपक्ष रहे रविंद्र चौबे कांग्रेस से आठवीं बार चुनाव मैदान में हैं। वे 1985 से 2008 तक लगातार सात बार चुनाव जीते हैं। पिछली बार २०१३ में हार गए थे। मध्यप्रदेश और बाद में नगरीय प्रशासन, उच्च शिक्षा एंव जनसंपर्क मंत्री रहे।रविंद्र मंत्री पद के प्रबल दावेदार तो हैं ही, उनके विधानसभा अध्यक्ष बनने की भी चर्चा है। मुख्यमंत्री की दौड़ में भी शामिल बताए जा रहे हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष 1993 में पहली बार विधायक बने। वर्ष 2000 में जोगी सरकार में राज्य युवा आयोग के अध्यक्ष रहे। वर्ष 2013 में दूसरी बार विधायक बने। दुर्ग से लगातार छह बार चुनाव लडऩे का अनुभव। दिग्गज कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा के सुपुत्र होने के कारण मंत्री पद के सशक्त दावेदार।
मोहम्मद अकबर की यह चौथी जीत है। इससे पहले 1998 और 2003 में वीरेंद्र नगर तथा 2008 में कवर्धा से जीत दर्ज की थी। वे मध्यप्रदेश और बाद में छग राज्य बनने के बाद मंत्री भी रहे। कांग्रेस ने उन्हें भाजपा सरकार को रोकने आरोप पत्र तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्हें आरोप पत्र तैयार करने का संयोजक बनाया गया।
एकमात्र महिला विधायक हैं जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट डौंडीलोहारा से दूसरी बार चुनी गई हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा के होरीलाल रावटे को १९,७३५ मतों के अंतर से हराया था। दूसरी बार जीत के साथ-साथ अनुसूचित जाति का प्रतिनिधित्व करने का फायदा मिल सकता है।