बीएलओ ने घर आकर पर्ची नहीं दी तब भी इस उम्मीद में कि हर बार तो वोट देते आ रहे हैं, खुशी-खुशी मतदान केंद्र पहुंचे। वहां सहायता केंद्र में जब बताया गया कि सूची में तो उनका नाम ही नहीं है तो वे बेहद निराश हो गए। कुछ लोग अनुनय-विनय करते रहे तो कुछ झगड़ भी पड़े। किसी ने इसे विरोधी दलों का राजनीतिक षडयंत्र बताया तो किसी ने प्रशासन को जी भरकर कोसा।
आप कार्यकर्ता मेहरबान सिंह ने बताया कि उनके परिवार के १२ सदस्यों के नाम विलोपित कर दिए गए। जबकि निगम चुनाव में परिवार के सभी सदस्यों के नाम थे। युवा चेंबर ऑफ कॉमर्स के प्रदेशाध्यक्ष अजय भसीन का पूरा परिवार ही मतदान से वंचित हो गया। सूची में परिवार के 8 सदस्यों के नाम नहीं थे।
रायपुर नाका दुर्ग निवासी सीमा फुलवाने 900 किलोमीटर की दूरी तय कर मुंबई से यहां वोट डालने आई थी। उनका पति आदित्य बिड़ला ग्र्रुप के हिंडालको मुंबई में अस्सिटेंट मैनेजर हैं। यहां आने पर पता चला कि उनका नाम सूची में नहीं है। मतदाता सूची खंगाला तो पता चला कि पड़ोसी खूशबू गोकलानी जो डेढ़ साल पहले शादी कर ससुराल चली गई है उनका नाम अब भी है। इतनी मशक्कत के बाद भी वोट नहीं दे पाई।
एक तरफ प्रशासन शत प्रतिशत मतदान के लिए अभियान चलाकर लोगों को प्रेरित किया। १८ साल से अधिक युवक -युवती मतदान से वंचित न हो जाए, इस उद्देश्य के साथ मतदाता सूची में नाम जोडऩे के लिए आंगनबाड़ी, निगम कर्मचारी, शिक्षकों की ड्यूटी लगाई। घर-घर भेजकर सर्वे कराया। बावजूद मतदाता सूची से हजारों मतदाताओं के नाम गायब हो जाना, लोगों की शिकायत पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं होना, कई तरह के संदेहों को जन्म देता है।
सेक्टर 4 के मतदान क्रमांक 62 में साहू और गुप्ता परिवार के दर्जनभर मतदाताओं के नाम नहीं थे। इसी बूथ में १२ ऐसे मतदाताओं के नाम सूची में शामिल थे। जिनका दो साल पहले निधन हो चुका है। ६००० मतदाताओं के नाम गायब- नाम कट जाने के कारण अकेले दुर्ग शहर से लगभग ६ हजार मतदान से वंचित हो गए।