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किस्सा छत्तीसगढ़ : चुनाव प्रचार करने बैलगाड़ी में लालटेन लेकर निकलते थे

विधानसभा चुनाव 1957 की सादगी याद करता हूं, तो समय के साथ आए बदलाव को देख हैरान रह जाता हूं। उस समय धमधा विधानसभा क्षेत्र में था। प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्र को तीन ब्लॉक में बांट देते थे।

भिलाईNov 16, 2018 / 11:30 am

Satya Narayan Shukla

किस्सा छत्तीसगढ़ : चुनाव प्रचार करने बैलगाड़ी में लालटेन लेकर निकलते थे

भिलाई. विधानसभा चुनाव 1957 की सादगी याद करता हूं, तो समय के साथ आए बदलाव को देख हैरान रह जाता हूं। उस समय धमधा विधानसभा क्षेत्र में था। प्रत्याशी विधानसभा क्षेत्र को तीन ब्लॉक में बांट देते थे। तीनों क्षेत्र के लिए एक-एक बैलगाड़ी, लालटेन, गैंती और फावड़ा लेकर ४ कार्यकर्ताओं की टीम निकलती थी। यह टीम पांच दिनों बाद लौटती थी।
झंडे के अलावा पोस्टर या बैनर का चलन नहीं था
चुनाव प्रचार के लिए बैलगाड़ी से यह टीम गांव पहुंचती थी। यहां पटेल से कहकर मुनादी करवाई जाती थी। इसके बाद एक जगह गांव के लोग एकत्र होते थे। गांव का दाऊ चाहे वह जिस समाज का हो, वह इस बैठक में मौजूद रहता था। दाऊ ही टीम के लिए भोजन की व्यवस्था भी करता था, बेहद प्यार से गांव के लोग एक-दूसरे से मिलते थे। एक गांव में दो झंडे लगाते थे और तीन झंडा गांव मेें छोड़ देते थे। झंडे के अलावा पोस्टर या बैनर का चलन नहीं था। दीवार लेखन जरूर किया जाता था।
पीतल की गुंडी में लेकर चलते थे पानी
बैलगाड़ी में चना, मुर्रा, मुर्रा का लड्डू और पीतल की गुंड्डी में पानी लेकर निकलते थे। गांव में बिजली नहीं थी, इस वजह से लालटेन और अलग से मिट्टी का तेल भी रख लेते थे। बड़े नेताओं की ओर से मैसेज दिया जाता था, जिसे हर गांव में जाकर कार्यकर्ताओं के माध्यम से पहुंचाया जाता था।
पांच दिन में 100 रुपए होता था खर्च
बैलगाड़ी से पांच से सात गांव में प्रचार करने निकलते थे। इस दौरान १०० रुपए खर्च आता था। गैंती और फावड़ा का उपयोग बैलगाड़ी के लिए रास्ते को साफ करने किया जाता था। पगडंडी में कभी-कभी मेड़ जैसा बना होता था, जिसे काटकर रास्ता निकाल लेते थे। धमधा से डॉक्टर टुमनलाल चुनाव जीते और मंत्री भी बने।
बदलता गया समय के साथ चुनाव का रंग
पहले चुनाव में जहां बैलगाड़ी से गांव-गांव पहुंच रहे थे। वहीं दूसरे चुनाव में व्यवस्था बदल गई थी, अब साइकल हाथ में दे दी गई थी। प्रत्याशी हर ब्लॉक में जाने वाले पांच-पांच कार्यकर्ता को साइकिल देते थे। इस तरह से १० से १५ साइकिल कार्यकर्ताओं को दी जाती थी। तब साइकिल की कीमत करीब ६० रुपए थी। चुनाव जीतने के बाद वह साइकिल कार्यकर्ता को प्रत्याशी दे देते थे।
 

आजादी के नाम पर मांगे जाते थे वोट
राजनीतिक दल चुनाव में आजादी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से वोट मांगते थे। तब चुनाव चिन्ह बैल का जोड़ा, बरगद पेड़ और अगले चुनाव तक हंसिया, हथौड़ा, तारा भी नजर आने लगा। प्रचार के दौरान गांव के लोगों को पंचवर्षीय योजना की जानकारी दी जाती थी। तब गांव के लोग सबसे पहले किसानी के लिए पानी की मांग करते थे। अगले चुनाव तक विद्यालय और अस्पताल की मांग की जाने लगी।
साइकिल की जगह स्कूटर, जीप ने ले ली
चुनाव प्रचार में इसके बाद बदलाव देखने को मिला। साइकिल की जगह स्कूटर और जीप ने लिया। प्रचार का अन्य खर्च भी इसके साथ बढऩे लगा। अब लोग गांव के विकास की जगह व्यक्तिगत मुद्दों को बैठकों में उठाने लगे। एक बड़ी बैठक एक गांव में पहले होती थी, जिसके स्थान पर हर मोहल्ले और घरों में बैठक होने लगी।चुनाव का खर्च भी पहले से अब बढ़ गया है।
चुनाव चिन्ह लगी होती थी मतपेटी
मतदान केंद्र में अलग-अलग मतपेटियों रखी होती थी, उसमें जितने दल चुनाव लड़ रहे होते थे, उनके चुनाव चिन्ह लगी पेटी होती थी। जिस दल को मतदान करना है, उस पेटी में मतपत्र पर उस चुनाव चिन्ह के सामने मुहर लगाकर डाल दिया जाता था। जिस पार्टी की पेटी खुलती थी, उसमें सिर्फ उस पार्टी को जितने वोट मिले हैं, वह होते थे। इस तरह दो बैल जोड़ा, बरगद का पेड़ के अलग-अलग मतपेटी होती थी।
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