दो साल से चल रही ट्रेनिंग
माइंस डिग्री और कम ऑक्सीजन वाली जगह में खुद को ढालना आसान नहीं होता। मंगरिता बताती है कि दो साल पहले जब अधिकारियों ने बताया कि महिलाओं के लिएसाहसिक और रोमांच से भरे पर्वतारोही कार्यक्रम होने जा रहा है तब उसने वहां जाने की इच्छा जताई। 2016 में ग्वालदम के ट्रेनिंग सेंटर में लगातार फिजिकल फिटनेस और रिटर्न टेस्ट देने के बाद आखिरकर 6 लड़कियों का चयन किया गया। उसने बताया कि एवरेस्ट फतह के पहले माउंट कामेट और सेफी को फतह करना जरूरी होता है।
माइंस डिग्री और कम ऑक्सीजन वाली जगह में खुद को ढालना आसान नहीं होता। मंगरिता बताती है कि दो साल पहले जब अधिकारियों ने बताया कि महिलाओं के लिएसाहसिक और रोमांच से भरे पर्वतारोही कार्यक्रम होने जा रहा है तब उसने वहां जाने की इच्छा जताई। 2016 में ग्वालदम के ट्रेनिंग सेंटर में लगातार फिजिकल फिटनेस और रिटर्न टेस्ट देने के बाद आखिरकर 6 लड़कियों का चयन किया गया। उसने बताया कि एवरेस्ट फतह के पहले माउंट कामेट और सेफी को फतह करना जरूरी होता है।
टीम माउंट कामेट को फतह करने निकली सबसे पहले उनकी टीम माउंट कामेट को फतह करने निकली जो ७ हजार 756 फीट ऊंची थी। जबकि उत्तररकाशी स्थित माउंट सैफी 6 हजार 16 1 मीटर यानी 20 हजार 213 फीट ऊंची थी उसे भी फतह किया।मंगरिता कहती है कि इस कड़ी ट्रेनिंग के बाद ही टीम एवरेस्ट फतह के लिएतैयार हो पाईहै। वे बताती है कि वहां के मौसम में खुद को ढालना ही बड़ा चैलेंज होता है। ट्रेनर उन्हें उस तापमान में कईघंटे रोके रखते हैं ताकि उनका शरीर उस वातावरणमें ढल जाए। वह कहती है कि एसएसबी की वजह से ही उसे आगे बढऩे का इतना बड़ा मौका मिला।