नाबालिग ने इंस्टाग्राम में लिखा कि आज मेरे और ….के रिलेशन को टूटे 9 महीने हो गए। पता नहीं कैसे मैंने उसके बिना 9 माह गुजारे हैं। इन नौ महीनों में एक दिन भी ऐसा नहीं था कि जिस दिन मैंने उसका जिक्र न किया हो। भले ही आज वह मुझसे दूर किसी और के साथ है, लेकिन दर्द तो होता है यार। मैंने उसके साथ तीन साल बिताए, लेकिन मुझे ऐसा कभी नहीं लगा था कि वो मुझे छोड़कर चली जाएगी। मैंने उन तीन साल में उसकी हर एक ख्वाहिश को पूरी करने की कोशिश किया……
इसके पहले 17 सितम्बर को भी उसने इंस्टाग्राम में एक पोस्ट किया। ऐ कैसा सितम था उनका। कुछ पलो की मोहब्बत के लिए मुझे सालों आजमाया गया। उन्होंने पहले मेरी फांसी मुकर्र कर दी। अदालत तो मुझे बाद में ले जाया गया।
बाल कल्याण समिति दुर्ग जिला के पूर्व सदस्य व विगत 15 सालों से नाबालिग बच्चों के कल्याण के कार्य कर रहे दिनेश सिंह कहते हैं कि कोरोनाकाल पैरेंट्स के लिए खतरे की घंटी है। खासकर किशोर बच्चे जो मानसिक और शरीरिक बदलाव की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। कोरोनाकाल में लंबे समय से बच्चों के स्कूल बंद है। पिछले सात महीने से बच्चे घर पर हैं। न खेल की गतिविधियों हो रही है न ही वे अपने दोस्तों से मिल पा रहे हैं। ऐसे में कहीं न कहीं बच्चे डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। खुद को अकेला महसूस कर रहे हैं। इस खालीपन का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। जिसकी वजह से छोटी-छोटी बातें भी उनके मन में घर कर जा रही हैं। मामूली बात पर आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम उठा रहे हैं। कोविड संकट में बच्चों की न सिर्फ शरीरिक बल्कि मानसिक देखभाल की भी जरूरत हैं। पैरेंट्स अपने बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा बातचीत करें। दोस्त की तरह व्यवहार कर उनके मन में चल रहे मानसिक गतिविधियों को जानने की कोशिश करें। जब बच्चा आपसे बात करेगा तो हो सकता है कई समस्याओं का खुद ब खुद हल निकल जाए। साथ ही पैरेंट्स बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर भी नजर रखें। टीन एज बच्चों के लिए सोशल मीडिया उनके जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। वे छोटी-छोटी बातें भी सोशल मीडिया में शेयर करते हैं।