scriptरोजी-रोटी और भूख के सामने फींका पड़ रहा कोरोना का संकट | Corona's crisis is fading in front of livelihood and hunger | Patrika News

रोजी-रोटी और भूख के सामने फींका पड़ रहा कोरोना का संकट

locationभिलाईPublished: May 25, 2020 12:39:05 am

Submitted by:

Abdul Salam

भिलाई इस्पात संयंत्र BSP के श्रमिक संगठन सीटू ने की प्रवासी मजदूरों की मदद.

रोजी-रोटी और भूख के सामने फींका पड़ रहा कोरोना का संकट

रोजी-रोटी और भूख के सामने फींका पड़ रहा कोरोना का संकट

भिलाई . कोरोना संकट के बीच अपने मूल निवास से पलायन होकर देश के कोने कोने में काम कर रहे मजदूरों की रोजी-रोटी का संकट उन्हें वापस अपने गांव की तरफ जाने को लगातार मजबूर कर रहा है। ऐसे में कोरोना का संकट रोजी रोटी और भूख के संकट के सामने फीका पड़ता नजर आ रहा है। यही वजह है कि 4३ डिग्री से भी ज्यादा तापमान में प्रवासी मजदूर कहीं ट्रकों व कंटेनरों के अंदर, तो कहीं इस भीषण गर्मी में माल से लदे ट्रकों के ऊपर में बैठकर किसी भी तरह अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं।

किस बात की सजा काट रहे प्रवासी मजदूर
भिलाई, सुपेला के टोल प्लाजा में इन प्रवासी मजदूरों का मदद करने पहुंचे सीटू के पदाधिकारियों ने इस मामले में नाराजगी जाहिर की है। कार्यकारी अध्यक्ष अशोक खातरकर ने कहा कि 22 मार्च 2020 की जनता कफ्र्यू के बाद प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को पूरे देश में संपूर्ण लॉक डाउन का ऐलान कर दिया, साथ सभी उद्योगों व अन्य संस्थाओं के लिए यह गाइड लाइन भी जारी कर दी। यह भी कहा कि किसी भी कामगार का नौकरी ना छीना जाए, ना ही किसी का तनख्वा रोका जाए, बावजूद इसके उद्योगों व संस्थाएं ऐसा नहीं कर सकी। जिसके कारण काम से बैठे मजदूर अपनी थोड़ी बहुत जमा पूंजी के खत्म होने के साथ ही अपने अपने गांव को लौटने के लिए बेचैन होने लगे। जैसे ही सरकार ने मजदूरों को उनके गृह ग्राम जाने के संबंध में बात कही। वैसे ही यह मजदूर मजबूरी में पैदल, साइकिल से, रिक्शा समेत अन्य साधनों से गृह ग्राम की ओर निकल पड़े। यह मजदूर किस अपराध की सजा काट रहे हैं। बेहतर होता कि सरकार लॉकडाउन के पहले ही मजदूरों को जाने की इजाजत दे देती। यह परेशानी तो मजदूरों को नहीं होती।

उद्योगों पर गहरा सकता है संकट
डीजीएस जोगा राव ने कहा कि जो मजदूर पूरे देश के अंदर लगातार पैदल या अन्य दूसरे माध्यमों से अपने गृह ग्राम की ओर वापस जा रहे हैं। वह मजदूर किसी न किसी उद्योग या संस्था में काम रहे थे। अब इन मजदूरों के वापस चले जाने के बाद उन उद्योगों या संस्थाओं में काम करने वालों की कमी होना स्वाभाविक है। लंबे समय से काम कर दक्षता हासिल कर चुके इन मजदूरों के जगह पर दूसरे नए मजदूरों को रखकर तुरंत उत्पादन शुरू करना उद्योगों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।

यहां चूक हुई तब फैला कोरोना वायरस
सहायक महासचिव एसएसके पनिकर ने कहा कि केंद्र सरकार कोरोना रोकने में कामयाब हुए केरल मॉडल का सही अध्ययन कर उस दिशा में बढ़ता तो कोरोना को रोका जा सकता था। केंद्र ने ऐसा ना कर लगातार अपने निर्णय को बदलने के कारण कोरोना संकट और गहरा रहा है। देश के कुछ राज्यों में कोरोना तेजी से फैला है। जिसके चपेट में वहां काम करने वाले प्रवासी मजदूर भी आ चुके हैं। अब वे मजदूर जब अपने गांव की ओर कूच कर रहे हैं तो वे अपने साथ कोरोना को भी लेकर जा रहे हैं। यहां बड़ी चूक हुई है। यह मजदूर अभी कोरोना से संक्रमित होकर वापस अपने गांव की तरफ जा रहे हैं, वे मजदूर लॉकडाउन के समय संक्रमित नहीं थे, अगर उसी समय सही निर्णय ले लिया होता तो आज उन मजदूरों को वापस अपने ग्रह ग्राम की तरह पलायन करने या कोरोनावायरस के एक राज्य से दूसरे राज्य में फैलने की गुंजाइश एकदम कम होती।

यहां कैसे संभव सोशल डिस्टेंसिंग की बात
पूरे देश सहित भिलाई के बीचों-बीच से गुजरने वाले हाईवे पर 30 मिनट कोई भी खड़े होकर देखें तो पता चलता है कि ट्रकों के ऊपर से लेकर ट्रकों व कंटेनरो के अंदर व निर्धारित किए गए बसों के अंदर लोग ठसा-ठस बैठकर जा रहे हैं। सरकार सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर दूर बैठने का गाइडलाइन जारी कर गाडिय़ों में इसका पालन करवाने का दावा कर रही है।

ट्रेंडिंग वीडियो