भिलाई

रिश्वत में मिले रुपए को फेंकने के बाद भी नहीं बच पाया, कोर्ट ने सुनाई 4 साल की सजा, पढ़ें खबर

एसीबी का छापा पड़ते ही रिश्वत की रकम को अपने ही ऑफिस में फेंकने वाले बैंक के अध्यक्ष मनोज कुमार शर्मा को न्यायालय ने दोषी ठहराया है।

भिलाईApr 14, 2018 / 08:26 pm

Satya Narayan Shukla

दुर्ग . भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) का छापा पड़ते ही रिश्वत की रकम को अपने ही ऑफिस में फेंकने वाले बैंक के अध्यक्ष खुर्सीपार निवासी मनोज कुमार शर्मा (४८) को न्यायालय ने दोषी ठहराया है। एसीबी कोर्ट के न्यायाधीश विजय कुमार साहू ने आरोपी को रिश्वत मांगने के लिए ३ साल और रिश्वत लेने पर धारा के तहत ४ साल की सजा सुनाई है। दोनों धाराओं के तहत आरोपी को कुल ३ हजार जुर्माना किया है। जुर्माने नहीं भरने पर तीन माह अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
नागरिक सहकारी केन्द्रीय बैंक सेक्टर-६ भिलाई के अध्यक्ष एसीबी के हत्थे चढ़े थे

नागरिक सहकारी केन्द्रीय बैंक सेक्टर-६ भिलाई के अध्यक्ष मनोज कुमार शर्मा २८ जनवरी २०१५ को एसीबी के हत्थे चढ़े थे। उसने कैलाश नगर निवासी अनिल शर्मा से २५ हजार लेने के बाद और 25 हजार रुपए मांगे थे। अनिल की शिकायत पर एसीबी ने उसे 15 हजार रुपए रिश्वत लेते हुए पकड़ा था।
कर्ज का ब्याज माफ करने के एवज में मांगी थी घूस

फरियादी अनिल शर्मा ने वर्ष २००१-०२ में नागरिक सहकारी केन्द्रीय बैंक से ७५ हजार रुपए ऋण लिया था। समय पर किस्त नहीं भरने पर यह राशि बढ़कर 16 लाख रुपए हो गई। बैंक के नोटिस पर अनिल ने अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देकर उपपंजीयक के समक्ष समझौता करने का आवेदन दिया। उपपंजीयक ने कुल ८ लाख १८ हजार २६८ रुपए जमा करने का निर्देश दिया था। इसमें से ४.३५ लाख रुपए देने के बाद बैंक अध्यक्ष ने ब्याज माफ करने के एवज में 50 हजार रुपए मांगे। इसमें से 25 हजार देने के बाद भी बैंक ने शेष राशि जमा करने नोटिस भेज दिया था।
कक्ष में रुपए बिखर गए थे नोट

बैंक अध्यक्ष ने रिश्वत में मिले एक हजार के १० और ५०० के १० नोट पैंट की जेब में रख लिए थे। जैसे ही एसीबी की टीम पहुंची उसने जेब से निकालकर नोट कमरे में फेंक दिए। पांच सौ के नोट टेबल पर था वहीं हजार के नोट को जमीन से उठाया गया।
बचाव पक्ष के गवाह पर विश्वास नहीं

एसीबी की कार्र्रवाई के दौरान मौके पर मौजूद व्यक्ति को बचाव पक्ष का गवाह बनाया गया। एसीबी को उसने बयान में कहा कि वहां जो हुआ उस पर ध्यान नहीं दिया। जब अदालत में बयान दिया तो उसने एसीबी की कार्रवाई को झूठा ठहराया। विरोधाभाषी बयान को सुनने के बाद न्यायालय ने यह कहते हुए बचाव पक्ष के गवाह को खारिज कर दिया कि गवाह पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

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