scriptखामोश हो गई मैत्रीबाग की रॉयल बंगाल बाघिन वसुंधरा | Death of Royal Bengal tigress Vasundhara of Maitribagh | Patrika News

खामोश हो गई मैत्रीबाग की रॉयल बंगाल बाघिन वसुंधरा

locationभिलाईPublished: Jan 15, 2021 11:46:25 pm

Submitted by:

Abdul Salam

बाड़े से नामोनिशान मिट जाने की चिंता.

खामोश हो गई मैत्रीबाग की रॉयल बंगाल बाघिन वसुंधरा

खामोश हो गई मैत्रीबाग की रॉयल बंगाल बाघिन वसुंधरा

भिलाई. मैत्रीबाग में रॉयल बंगाल टाइगर का एक जोड़ा ही शेष था, जिसमें से मादा वसुंधरा (बाघिन) 10 साल ने गुरुवार और शुक्रवार की दरमियानी रात में दम तोड़ दिया। रॉयल बंगाल टाइगर के जोड़े नंदी और वसुंधरा को एक बाड़े में रखकर अक्टूबर 2019 से बीडिंग के लिए प्रयास किया जा रहा था। प्रबंधन को उम्मीद थी कि जल्द उन्हें इस बाड़े से खुशखबर मिलेगी। इसके विपरीत आज यहां से निराश करने वाली खबर मिली कि बंगाल टाइगर की मौत हो गई है।

खून की कमी और कमजोरी से गई जान
वसुंधरा पिछले दस दिनों से बीमार चल रही थी, वह लगातार कमजोर होती जा रही थी। उसे खून की भी कमी हो गई थी। प्रबंधन ने अंजोरा से भी चिकित्सक बुलाए थे, इसके साथ-साथ जंगल सफारी से भी एक्सपर्ट को बुलाया गया था। सरकारी चिकित्सक भी उस पर नजर रखे हुए थे। इसके बाद भी उसे बचाया नहीं जा सका।

रह गया था आखिरी जोड़ा
मैत्रीबाग में एक ही जोड़ा रॉयल बंगाल टाइगर शेष था। जू में मौजूद शेष बंगाल टाइगर या तो एक्सचेंज में चले गए या मर चुके हैं। सिर्फ एक जोड़ा ही रह गया था, नर पहले ही उम्र दराज हो चला है। मादा बेहद कमजोर थी। अब जोड़े में से एक के चले जाने से कुनबा का नामोनिशान समाप्त हो जाने की आशंका है।

रॉयल बंगाल के जोड़े को लाए थे भुवनेश्वर से
मैत्रीबाग में रॉयल बंगाल टाइगर सबसे पहले भुवनेश्वर से एक जोड़ा लाए थे। जिसका नाम शंकर व पार्वती (पारो) था। मैत्रीबाघ में उनकी ही संतान है। वह धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इनकी संख्या पहले बढ़कर करीब आधा दर्जन हो गई थी, उम्र होने के बाद एक-एक कर इनकी मौत होती गई। 30 दिसंबर 2014 को दुर्गा की मौत हो गई थी। वहीं 2 जुलाई 2015 को सांप के डसने से नर्मदा चल बसी थी। यह गणेश की संतान थे। इस तरह से मैत्री बाग में अब महज दो नर और एक मादा रॉयल टाइगर बंगाल बच गए थे। 21 अगस्त 2019 को सतपुड़ा (बंगाल टाइगर 15 साल) की भी मौत हो गई। वह दो साल से कैंसर की बीमारी से जूझ रहा था। अब वसुंधरा ने भी दम तोड़ दिया।

भोपाल के शंकर के लिए उडीसा से लाए थे पारो को
मैत्रीबाग में भोपाल से 1976 में नवजात शावकों को मैत्रीबाग के तात्कालीन इंचार्ज आरए वर्मा भिलाई लेकर आए थे। इसके बाद उसके जोड़े बाघिन पार्वती (पारो) को भुवनेश्वर के नंदन कानन से 1984 में लेकर आए थे। इनकी संतान लक्ष्मी और गणेश थे। जिनसे नर्मदा और तसपुड़ा का जन्म हुआ।

चौंथी पीढ़ी भी हो रही खत्म
नर्मदा और सतपुड़ा मैत्रीबाघ में बंगाल रॉयल टाइगर की तीसरी पीड़ी थी। अब चौंथी पीढ़ी उनके बच्चे वसुंधरा और नंदी में वसुंधरा चल बसी। इस तरह से धीरे-धीरे चौंथी पीढ़ी भी खत्म हो रही है। इनकी संख्या पहले बढ़कर करीब आधा दर्जन हो गई थी, उम्र होने के बाद एक-एक कर इनकी मौत होती गई।

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