दीपक का मानना है कि लोककला की सुंदरता के प्रति आकर्षण और सृजनात्मक प्रेरणा के स्त्रोत ग्रामीण कलाकारों की कला में ही देखने को मिलती है, लेकिन गरीबी और जीविकोपार्जन का संघर्ष उन्हें अपने भीतर की कला को मारने पर विवश कर देता है। दीपक ऐसे ही कलाकारों के लिए उम्मीदों का दीपक है। ग्रामीण प्रतिभाओं की कला को निखारने उन्होंने 2 अक्टूबर 1993 को अपने ग्राम अर्जुन्दा में करीब पौने दो एकड़ में लोककला ग्राम की स्थापना की। तब से अनवरत यहां साल में दो-तीन बार पखवाड़े भर की कार्यशालाएं होती हैं। यहां नए कलाकारों को लोककला की सभी विधाओं की बारीकियां सिखाई जाती है। यह नि:शुल्क और अवासीय होता है। बिलकुल किसी अकादमिक व प्रशिक्षण संस्थान की तरह समय सारिणी और अनुशासित भी।
दीपक कहते हैं कि रीति-रिवाज, संस्कार, पर्व, परंपराएं, उत्सव आदि हमारी संस्कृति के अंग है। इन्हीं में लोक-कला के स्वरूप पुष्पित-पल्लवित होते रहे हैं। कला मानवीय भावनाओं की एक सहज अभिव्यक्ति है। कलाकार जिस अनुभव को इस समाज से ग्रहण करता है, उसे अपनी कला से पुन: समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहता है। वे लोककला ग्राम में प्रशिक्षत कलाकारों को अपनी संस्था लोकरंग और लहरगंगा में अवसर देते हैं। इनके अलावा कलाकार जिस भी संस्था से जुडऩा चाहे वे स्वतंत्र होते हैं। बस दीपक का एक ही उद्देश्य है छग की लोककला और कलाकार समृद्ध रहे। अभिव्यक्ति के नाम पर सांस्कृतिक प्रदूषण की साया न पड़े।
आज सपन भट्टाचार्य जैसे गायक, पुरानिक साहू और सतीश साहू जैसे नृत्य निदेशक इस लोककला ग्राम की देन हैं। पप्पू चंद्राकर, घेवर यादव, चिमन साहू, शैलेष साहू, दिनेश वर्मा, लेखू दिल्लीवार, संजय वर्मा, विजय पाटिल, रानी निषाद और भूमिका जैसे कलाकार यहां से निकलकर लोककला को और समृद्ध कर रहे हैं। लोकेश देवांगन, ओमप्रकाश मढ़रिया, अंजली चौहान, किरण साहू, सुमन गोस्वामी, संतोष दास छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अहम किरदार निभा रहे हैं।