script28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल | Deepak has been polishing the art talents of villages for 28 years | Patrika News

28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल

locationभिलाईPublished: Jan 27, 2021 06:02:58 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

लोककला ग्राम से प्रशिक्षित 700 से भी अधिक कलाकार आज विभिन्न कला संस्थाओं में नृत्य, प्रहसन, गायन, वादन में प्रस्तुति दे रहे हैं। कुछ तो छालीवुड में भी छा गए हैं।

28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल

28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल,28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल,28 साल से CG की लोककला को संजोने वाले ये हैं दीपक चंद्राकर, पढि़ए कैसे ग्रामीण प्रतिभाओं को तराशकर बनाया मंच के काबिल

भिलाई. लोक कला के जरिए हमारी सांस्कृतिक विरासत, उसकी पहचान और उसके अस्तित्व को संजोए रखने वाले लोकरंग अर्जुन्दा के संचालक दीपक चंद्राकर आज अपने सरीखे नए कलाकारों को न केवल तलाशते व तराशते हैं, बल्कि उन्हें मंचीय प्रस्तुति और जीविकोपार्जन का अवसर भी उपलब्ध करवा रहे हैं। उनके लोककला ग्राम से प्रशिक्षित 700 से भी अधिक कलाकार आज विभिन्न कला संस्थाओं में नृत्य, प्रहसन, गायन, वादन में प्रस्तुति दे रहे हैं। कुछ तो छालीवुड में भी छा गए हैं।
कलाकारों के उम्मीदों के दीपक बने
दीपक का मानना है कि लोककला की सुंदरता के प्रति आकर्षण और सृजनात्मक प्रेरणा के स्त्रोत ग्रामीण कलाकारों की कला में ही देखने को मिलती है, लेकिन गरीबी और जीविकोपार्जन का संघर्ष उन्हें अपने भीतर की कला को मारने पर विवश कर देता है। दीपक ऐसे ही कलाकारों के लिए उम्मीदों का दीपक है। ग्रामीण प्रतिभाओं की कला को निखारने उन्होंने 2 अक्टूबर 1993 को अपने ग्राम अर्जुन्दा में करीब पौने दो एकड़ में लोककला ग्राम की स्थापना की। तब से अनवरत यहां साल में दो-तीन बार पखवाड़े भर की कार्यशालाएं होती हैं। यहां नए कलाकारों को लोककला की सभी विधाओं की बारीकियां सिखाई जाती है। यह नि:शुल्क और अवासीय होता है। बिलकुल किसी अकादमिक व प्रशिक्षण संस्थान की तरह समय सारिणी और अनुशासित भी।
लोककला को कर रहे समृद्ध
दीपक कहते हैं कि रीति-रिवाज, संस्कार, पर्व, परंपराएं, उत्सव आदि हमारी संस्कृति के अंग है। इन्हीं में लोक-कला के स्वरूप पुष्पित-पल्लवित होते रहे हैं। कला मानवीय भावनाओं की एक सहज अभिव्यक्ति है। कलाकार जिस अनुभव को इस समाज से ग्रहण करता है, उसे अपनी कला से पुन: समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहता है। वे लोककला ग्राम में प्रशिक्षत कलाकारों को अपनी संस्था लोकरंग और लहरगंगा में अवसर देते हैं। इनके अलावा कलाकार जिस भी संस्था से जुडऩा चाहे वे स्वतंत्र होते हैं। बस दीपक का एक ही उद्देश्य है छग की लोककला और कलाकार समृद्ध रहे। अभिव्यक्ति के नाम पर सांस्कृतिक प्रदूषण की साया न पड़े।
लोककला ग्राम से निकले कलाकार कर रहे हमारी संस्कृति को समृद्ध
आज सपन भट्टाचार्य जैसे गायक, पुरानिक साहू और सतीश साहू जैसे नृत्य निदेशक इस लोककला ग्राम की देन हैं। पप्पू चंद्राकर, घेवर यादव, चिमन साहू, शैलेष साहू, दिनेश वर्मा, लेखू दिल्लीवार, संजय वर्मा, विजय पाटिल, रानी निषाद और भूमिका जैसे कलाकार यहां से निकलकर लोककला को और समृद्ध कर रहे हैं। लोकेश देवांगन, ओमप्रकाश मढ़रिया, अंजली चौहान, किरण साहू, सुमन गोस्वामी, संतोष दास छत्तीसगढ़ी फिल्मों में अहम किरदार निभा रहे हैं।
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