सीएम भूपेश बघेल के निर्वाचन क्षेत्र पाटन के सांकरा, दुर्ग ग्रामीण के आलबरस और चंगोरी की महिलाएं एलोविरा और चारकोल फ्लेवर का साबुन तैयार कर रही हैं। बाजार में सौंदर्य उत्पादों में एलोविरा का जबरदस्त चलन है। इसके अलावा चारकोल की स्वच्छता प्रदान करने के गुणों के कारण स्वीकार्यता बढ़ी है। महिलाओं ने इस ट्रेंड को बखूूबी पहचाना और बाजार में दोनों फ्लेवर का साबुन उतारा। महिलाओं द्वारा तैयार इन साबुनों की डिमांड कुछ ही महीनों में प्रदेश के बड़े शहरों तक पहुंच गई है। सांकरा की महिलाएं 5000 साबुन के पैकेट बेच चुकी हैं। वहीं आलबरस की महिलाओं ने अस्पतालों, सरकारी संस्थानों व पंचायतों को 6000 साबुन सप्लाई कर लिया है। सबसे अधिक डिमांड मनरेगा में है, जहां मजदूूरों के हाथ धोने के लिए साबुन का उपयोग करना है।
वोकल फॉर लोकल के माध्यम से महिलाओं ने वनविहीन जिले की हरियाली को बचाने का भी बीड़ा उठाया है। इसके लिए महिलाएं बांस से ट्री-गार्ड बना रही हैं। सांकरा के आजीविका केंद्र की 30 महिलाएं करीब महीनेभर से इस काम में लगी हैं। महिलाओं ने 1000 ट्री-गार्ड भिलाई नगर निगम को सप्लाई किया है। इसका उपयोग नगर निगम पौधरोपण के लिए करेगा। हार्टिकल्चर विभाग पहले से ही महिलाओं द्वारा तैयार ट्री-गार्ड का उपयोग कर रहा है। जिला पंचायत द्वारा पंचायतों में हजारों की संख्या में पौधरोपण की तैयारी की जा रही है। इनके लिए भी ट्री-गार्ड बनाने की जिम्मेदारी महिलाओं को दी गई है।
महात्मा गांधी के मंत्र पर सुराजी गांवों की कल्पना के साथ सरकार के नरवा, गरवा, घुरवा व बाड़ी प्रोजेक्ट से ग्रामीण महिलाओं को जोडऩे का अभियान शुरू किया गया है। इसी के तहत ग्राम केसरा में 14 एकड़ बंजर भूमि में गौठान बनाया गया। लॉकडाउन के दौरान यहां 6 स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने सब्जियां लगाई। यहां लॉकडाउन की अवधि में भिंडी, बरबट्टी, लौकी, बैंगन, कुम्हड़ा और कई तरह की भाजी का बम्पर उत्पादन हुआ। एक महीने में ही 10 क्विंटल भिंडी के साथ अन्य सब्जियां निकली। इससे महिलाओं को 50 हजार की आय हुई।
जिले में 1521 से अधिक महिला स्व-सहायता समूह हैं। जिला प्रशासन द्वारा इन्हें ट्रेनिंग देकर किसी न किसी रूप में स्वरोजगार से जोड़ा गया है। ये महिलाएं साबुन, सेनेटाइजर, मास्क, फिनाइल, बांस के उपयोगी सामान के साथ घरों में रोज खाने-पीने की चीजें जैसे आचार, पापड़, बड़ी, बिजौरी, मसाले, जुट और धागे के फैंसी-सजावटी आइटम जैसे स्थानीय उत्पाद तैयार कर रही हैं। शासन के प्रोजेक्ट नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत तैयार कराए गए गौठानों में प्रत्येक गांव के 2 से 3 समूहों को जोड़ा गया है। गौठानों में महिलाओं सब्जी भाजी की खेती के साथ जैविक खाद तैयार कर बेच रही हैं।
सच्चिदानंद आलोक, सीईओ, जिला पंचायत दुर्ग ने बताया कि स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है। इसका मूल मकसद स्थानीय उत्पाद तैयार करवाकर महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराना और उन्हें आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना है। जिले में महिलाएं स्किल्ड हो गई हैं और अच्छा काम कर रही हैं। इनके तैयार उत्पादों की अच्छी डिमांड है। भविष्य में फूड पैकेजिंग सर्टिफिकेट लेकर इनके उत्पाद बाजार की प्रतिस्पर्धा में उतारने की योजना है।