एक तरफ लू के थपेड़े, दूसरी ओर धधकती भट्ठियां
बीएसपी के वे कर्मचारी जो भट्ठियों के समीप काम करते हैं, उनको गर्मियों के मौसम में विषम परिस्थिति से गुजरना पड़ता है। एक ओर लू के थपेड़े होते हैं, तो दूसरी ओर धधकती भट्ठियां। ऐसे समय में उनको कठोर आत्मविश्वास ही वहां बनाए रखता है।
प्रथम प्रधानमंत्री ने बीएसपी को दिया था आधुनिक मंदिर का दर्जा
भिलाई इस्पात संयंत्र देश के पब्लिक सेक्टर के प्रथम तीन एकीकृत इस्पात संयंत्रों में से एक है। तत्कालीन भारत सरकार और पूर्ववर्ती सोवियत संघ की सरकार के बीच 2 फरवरी, 1955 को एक मिलियन टन क्षमता के साथ इस संयंत्र की स्थापना के लिए करार पर हस्ताक्षर किए गए थे। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने देश के हर कोने से जुटे हुए लोगों के सहयोग से निर्मित इस भिलाई इस्पात संयंत्र को आधुनिक मंदिर का दर्जा देते हुए इसे भारत का नया युग बताया।
राष्ट्रपति के हाथों हुआ लोकार्पण
4 फरवरी 1959 को भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भिलाई इस्पात संयंत्र के प्रथम ब्लास्ट फर्नेस का लोकार्पण किया। पहले चरण में एक मिलियन टन क्षमता के साथ 1961 को इसकी समस्त इकाइयां शुरू हो गई।
दो दशक से कर रहे क्षमता से अधिक उत्पादन
रूस के सहयोग से भारत ने दूसरे पंचवर्षीय योजना के तहत 1959 में एक मिलियन टन इस्पात संयंत्र के तौर पर भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना की। बीएसपी करीब 22 वर्षों से मापित क्षमता से ज्यादा मात्रा में गुणवत्तायुक्त इस्पात का उत्पादन कर रही है। साथ ही इस इकाई ने दो दशकों से मंदी के दौरान भी भी हर साल मुनाफा अर्जित किया है। यही वजह है कि बीएसपी ने देश के सर्वश्रेष्ठ एकीकृत इस्पात संयंत्र के लिए दी जाने वाली प्रधानमंत्री ट्रॉफी 22 में से 11 बार जीता है।
14 बार पृथ्वी को लपेटा जा सकता है बीएसपी की रेल से
भिलाई इस्पात संयंत्र के रेल मिल से अब तक इतना रेलपांत का उत्पादन किया जा चुका है कि पृथ्वी को बीएसपी के रेलपांत से 14 बार लपेटा जा सकता है। देश में रेलपांत के मामले में आजादी के बाद से अब तक बीएसपी की मोनोपल्ली रही है। लॉग्स रेलपांत का उत्पादन कर बीएसपी ने एशिया में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है।
कर्मचारी डिगे नहीं
बीएसपी में समय के साथ कर्मियों को दी जाने वाली सुविधाओं व दूसरी चीजों में कटौती की जाती रही है। इसके बाद भी उत्पादन पर इसका असर नहीं पड़ता। कर्मचारी बेहतर उत्पादन और नए कीर्तिमान स्थापित करने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं। असल में बीएसपी की यह कार्य संस्कृति रही है, जिसमें बिना किसी स्वार्थ के संयंत्र के उत्पादन बढ़ाने पर ही फोकस रहता है। यह परंपरा किसी मौसम के आगे घुटने नहीं टेकती।
गढ़ रहे श्रमगाथा
संयंत्र के कर्मचारी मौसम के बढ़ते तापमान पर भी निरंतर उत्पादन के ग्राफ को बेहतर करने में जुटे रहते हैं। बीएसपी के हजारों डिग्री से भी अधिक तापमान वाले फर्नेसों में पिघला कर इस्पात बनाने वाले यहां के कर्मचारी हर दिन श्रमगाथा गढ़ रहे हैं।
बीएसपी प्रबंधन करता है यह इंतजाम
पिघलते लोहे के समीप काम करने वाले कर्मचारी जहां अपने फर्ज को अंजाम देते हैं, वहीं बीएसपी प्रबंधन भी इनके लिए यहां बेहतर वातावरण बनाने समय-समय पर नए इंतजाम करता रहता है, ताकि गर्मी में भी उत्पादन अपनी ऊंचाई बनाए रखे। यही वजह है कि सिंटरिंग प्लांट में मौसम के बदलने का कोई असर नहीं पड़ता।
क्षमता बढ़ाकर 30 करोड़ टन करने की योजना
केन्द्र सरकार की योजना है कि देश के इस्पात उद्योग को पटरी पर लाया जा सके। इस्पात मंत्रालय ने तय किया है कि 2025 तक 30 करोड़ टन क्षमता के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए। सरकार ५० वर्ष की योजना तैयार कर रही है। राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2012 में सिर्फ बदलाव से काम नहीं चलेगा, बल्कि एक नई व गतिशील नीति की जरूरत है। बीएसपी की उत्पादन क्षमता 7 एमटी से बढ़ाकर 10 एमटी करने की है।
श्रमवीरों के लिए ठंडे पानी की फुहार
बीएसपी प्रबंधन ने यहां के कर्मियों के लिए बड़े-बड़े पंखे लगाकर उनके पीछे वॉटर जेट लगा दिया है, जिससे पानी की फुहारों से उनको ठंडक मिलती रहे। संयंत्र में यहां काम करने वालों के लिए गर्मियों में वाटर कूलर लगाया गया है।