पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण विधि किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों की पूजा न करने से पूर्वजों को मृत्युलोक में जगह नहीं मिलती। उनकी आत्मा भटकती रहती है। जिससे पितर नाराज होते हैं और कई दोष लगते हैं। इसलिए पितृपक्ष में तर्पण विधि और श्राद्ध कर्म किया जाता है।
पितृ पक्ष पितरों को याद और उनकी पूजा करने का समय है। इसलिए परिवार में एक तरफ से शोकाकुल माहौल रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से बचना चाहिए। नई वस्तु की खरीदारी भी नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना अशुभ बताया गया है।
भूलकर भी पितृ पक्ष में लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि पितरों के लिए जो भोजन तैयार किया जाता है या फिर जिसमें भोजन परोसा जाता है, उसमें लोहे के बर्तनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पितर नाराज हो जाते हैं। परिवार की सुख-शांति और समृद्धि पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए इस दौरान आप तांबा, पीतल या अन्य धातु के बर्तनों का प्रयोग कर सकते हैं।
पितृपक्ष में अगर पूर्वजों का श्राद्ध कर रहे हैं तो शरीर पर तेल का प्रयोग और पान का सेवन करने से बचना चाहिए। साथ ही अगर संभव हो सके तो दाढ़ी और बाल भी नहीं कटवाने चाहिए और इस दौरान इत्र का प्रयोग करना भी शास्त्रों में वर्जित माना गया है। ऐसा करने से पितर नाराज होते हैं, जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
पितृपक्ष के समय हमेशा सात्विक भोजन करना उत्तम माना गया है क्योंकि इसी भोजन से पितरों का भोग लगाया जाता है। भूलकर भी प्याज व लहसुन से बने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। अगर आपको अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि याद नहीं है तो पितृ पक्ष के अंतिम दिन पिंडदान या तर्पण विधि कर पूजा-अर्चना कर सकते हैं। ऐसा करने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।