scriptसिकलसेल पर रिसर्च करने लंदन से भिलाई पहुंचे डॉ अलेक्जेंडर | Dr Alexander, from London to Bhilai to research on Scialsell | Patrika News

सिकलसेल पर रिसर्च करने लंदन से भिलाई पहुंचे डॉ अलेक्जेंडर

locationभिलाईPublished: Jul 02, 2019 10:44:12 pm

Submitted by:

Komal Purohit

डॉ अलेक्जेंडर ने बताया कि कई देशों में सिकलसेल को लेकर काफी जागरूकता है। इसलिए वे समय पर इस स्थिति को पहचान पाते हैं,लेकिन इंडिया में खासकर ग्रामीण क्षेत्र में अब भी इसे लेकर लोगों में जागरुकता कम है।

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भिलाई. सिकलसेल केवल छत्तीसगढ़ के साहू, कुर्मी या आदिवासियों में नहीं बल्कि अमेरिका, आफ्रीका और तहरान जैसे देशों में भी पाए जाते हैं। भारत की तरह वहां भी अब तक इस बीमारी का इलाज कोई नहीं ढूंढ पाया है। इस बीमारी की वजह से अलग-अलग देशों में लोगों की सामाजिक जिंदगी अलग-अलग दिखाई देती है। भारत में लोग इसके बारे में जागरूक भी है और उन्हें पता है कि यह अनुवांशिक रोग किसी के छूने या साथ रहने से नहीं फैलता, यहां ऐसे लोगों की सोशल लाइफ काफी अच्छी है। यह बातें लंदन से आए डॉ अलेक्जेंडर कुमार ने कही। वे इन दिनों भारत में सिकलसेल के सामाजिक असर पर रिसर्च करने पहुंचे हैं। भिलाई में उन्होंने सिकलसेल के मरीजों से मिलकर उनके जीवन में पडऩे वाले प्रभाव और उनकी सोशल लाइफ के बारे में जाना।
अवेयरनेस जरूरी
डॉ अलेक्जेंडर ने बताया कि कई देशों में सिकलसेल को लेकर काफी जागरूकता है। इसलिए वे समय पर इस स्थिति को पहचान पाते हैं,लेकिन इंडिया में खासकर ग्रामीण क्षेत्र में अब भी इसे लेकर लोगों में जागरुकता कम है। उन्होंने बताया कि वे हैदराबाद और दिल्ली से होकर भिलाई पहुंचे हैं। भारत में रिसर्च करने के बाद वे वापस लंदन पहुंच जाएंगे। उन्होंने बताया कि सिकलसेल से लडऩे परिवार का साथ सबसे ज्यादा जरूरी है जो इंडिया में नजर आता है। जबकि ब्राजील जैसे देश में डॉक्टर रंगभेद कर इलाज करते हैं। यहां उन्हें लगता है कि वे गोरे लोगों का इलाज करेंगे तो उन्हें भी यह बीमारी हो जाएगी।
इन देशों में भी किया रिसर्च
पश्चिम आफ्रीका- घाना, ईस्ट आफ्रीका केनिया, यूरोप, यूनाइटेड किंडम, फ्रांस, नार्थ अमेरिका, यूनाइटेड स्टेट अमेरिका, फ्रांस, नार्थ अमेरिका, ब्राजील, तहरान

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