विद्यार्थी को महंगी मोबाइल और फोरजी के दायरे में लगाना गलत दरअसल, कॉलेजों के जिम्मेदारों को लगता है निजी टेलिकॉम के आने के बाद संस्थाओं में फ्री वाई-वाई देने का कोई मतलब नहीं होगा। इसी तरह उन्हें यह भी गलत फहमी है कि कॉलेज के पढऩे वाले तमाम विद्यार्थियों के पास फोरजी वाले आधुनिम मोबाइल फोन है। जिले के सरकारी कॉलेज में अधिकतर विद्यार्थी वो हैं, जो आर्थिक तंगी की वजह से इस ओर आए हैं। परिवार सामान्य जरूरतों के लिए भी संघर्ष के बाद पैसे जुटा पाता है। अधिकतर विद्यार्थी स्लम एरिया के हैं। बावजूद इसके हर एक विद्यार्थी को महंगी मोबाइल और फोरजी के दायरे में लगाना सरासर गलत हैं।
50 कॉलेजों से आगे नहीं बढ़े
उच्च शिक्षा विभाग ने छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसायटी (चिप्स) को एजेंसी बनाकर ५० कॉलेजों में वाई-फाई लगाने की शुरुआत की। जानकारी के मुताबिक कॉलेज में लगाए जा रहे वाई-फाई का मेंटनेंस की जिम्मेदारी भी चिप्स को ही दी गई। विशेषज्ञ बताते हैं कि ५० कॉलेजों की सूची में दुर्ग जिले के ४ कॉलेजों के नाम शामिल थे, जबकि बाकियों में वाई-फाई लगाने अगली सूची जारी करने की योजना थी, जिस पर आगे की कार्रवाही पूरी ही नहीं हो पाई। यानि सरकार ने विद्यार्थियों को जो टैबलेट बांटे वह सब भी बर्बाद हो गए, क्योंकि वाईफाई के बिना विद्यार्थियों के लिए सरकारी टैबलेट का कोई वजूद ही नहीं रहा।
उच्च शिक्षा विभाग ने छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसायटी (चिप्स) को एजेंसी बनाकर ५० कॉलेजों में वाई-फाई लगाने की शुरुआत की। जानकारी के मुताबिक कॉलेज में लगाए जा रहे वाई-फाई का मेंटनेंस की जिम्मेदारी भी चिप्स को ही दी गई। विशेषज्ञ बताते हैं कि ५० कॉलेजों की सूची में दुर्ग जिले के ४ कॉलेजों के नाम शामिल थे, जबकि बाकियों में वाई-फाई लगाने अगली सूची जारी करने की योजना थी, जिस पर आगे की कार्रवाही पूरी ही नहीं हो पाई। यानि सरकार ने विद्यार्थियों को जो टैबलेट बांटे वह सब भी बर्बाद हो गए, क्योंकि वाईफाई के बिना विद्यार्थियों के लिए सरकारी टैबलेट का कोई वजूद ही नहीं रहा।
मेंटनेंस करने में दिलचस्पी नहीं
चिप्स ने जिले के जिन कॉलेजों में वाई-फाई डिवाइस लगाकर दिए हैं, उनका मेंटनेंस करने में विभाग कोई खास दिलचस्पी नहीं रखता। कॉलेजों के प्राचार्यों का कहना है कि चिप्स के साथ-बार पत्राचार करने के बाद भी खराबी सुधारने कोई रिस्पांस नहीं आता। एक प्राचार्य के मुताबिक चिप्स के इंजीनियरों ने वाई-फाई डिवाइस लगाया है, लेेकिन वह अब तक चालू ही नहीं हो पाया। इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन अधिकारी आज-कल कहकर महीनों से टालते आ रहे हैं। दूसरी तरफ उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों से वाई-फाई लगने या न लगने की स्थिति पूछता है, लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं करता कि वाई-फाई चालू भी है या नहीं।
चिप्स ने जिले के जिन कॉलेजों में वाई-फाई डिवाइस लगाकर दिए हैं, उनका मेंटनेंस करने में विभाग कोई खास दिलचस्पी नहीं रखता। कॉलेजों के प्राचार्यों का कहना है कि चिप्स के साथ-बार पत्राचार करने के बाद भी खराबी सुधारने कोई रिस्पांस नहीं आता। एक प्राचार्य के मुताबिक चिप्स के इंजीनियरों ने वाई-फाई डिवाइस लगाया है, लेेकिन वह अब तक चालू ही नहीं हो पाया। इसकी शिकायत भी की गई, लेकिन अधिकारी आज-कल कहकर महीनों से टालते आ रहे हैं। दूसरी तरफ उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों से वाई-फाई लगने या न लगने की स्थिति पूछता है, लेकिन यह जानने की कोशिश नहीं करता कि वाई-फाई चालू भी है या नहीं।