सृष्टि की जगह माता पार्वती और पिता शिव की परिक्रमा कर प्रथम पूज्य बने। इस तरह संदेश दिया कि संसार में माता-पिता से बढ़कर और कोई नहीं होता। सदा उनका सम्मान करें।
परशुराम गुरु शिव के दर्शन करने पहुंचे। श्रीगणेश ने शयन करते शिव के पास जाने से रोका तो उन पर फरसे से वार किया। गणेश का दांत टूट गया, वे एक दंत कहलाए। टूटे हुए दांत से महाभारत लिखी।
श्री गणेश यश, कीर्ति, वैभव, बल और बुद्धि से परिपूर्ण हैं, तब भी सम्मान का भाव, आत्म संयम, विद्वता, चातुर्य, उदार होने के गुण संजोए हैं। इन विशेषताओं से वे शुभ-समृद्धि के प्रतीक हैं।
वक्रतुंड रूप में मत्सरासुर औैर उसके दो पुत्रों, एकदंत रूप में शक्तिशाली दानव मद, महोदर रूप में मोहसुर राक्षस, गजानन रूप में लोभासुर दैत्य, लंबोदर रूप में क्रोधासुर, विकट रूप में कामासुर, विघ्नराज रूप में ममासुर का संहार किया।
महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की, पर उसको लिखना आसान नहीं था। तब उनके अनुरोध पर बुद्धि के दाता श्रीगणेश ने 10 दिन तक बिना रुके महाभारत को लिखा। भगवान गणेश की आकृति से आपको मिलता है ज्ञान
विशाल कर्ण – सत्य सुनो, हमेशा सीखो
विशाल मस्तक – श्रेष्ठ विचार अपनाओ
विशाल ह्दय – गलतियों को माफ करो
विशाल उदर – अच्छे-बुरे को पचाकर खुश रहो
लंबी सूंड – हमेशा गतिमान रहो
छोटी नेत्र – पारखी व दूर दृष्टा बनो
मूषक – बड़े-छोटे का भेद मत करो
गणपति स्थापना का विशेष मुहूर्त (सुबह) 11.02 से 1.31 बजे तक है। वहीं श्रेष्ठ मुहूर्त बुधवार शाम 4.07 से शुरू होकर गुरुवार दोपहर 2.51 बजे तक है। कब से कब तक
श्री गणेश चतुर्थी 13 सितंबर गुरुवार से प्रारंभ होकर 23 सितंबर रविवार को गणपति विसर्जन के साथ समाप्त होगा। गुजराती समाज के प्रतिष्ठित कथाकार दिवंगत उमेश भाई जानी ने कुछ दिन पूर्व पत्रिका से यह जानकारी शेयर की थी।