जब से स्कूल बना है, तब से बालक और बालिका के लिए एक ही टॉयलेट बनाया गया है। एक बड़े से कमरे में अगल-बगल तीन टॉयलेट बना दिए गए हैं, जिसमें दीवार पर बालक और बालिका लिख दिया गया है। नॉम्र्स के अनुसार भी यह शौचालय सही नहीं है।@Patrika. विभाग की मानें तो दर्ज संख्या के आधार पर 300 से ज्यादा छात्रों की संख्या होने पर स्कूल में शौचालय की संख्या भी ज्यादा होनी चाहिए, लेकिन यहां एक में ही काम चलाया जा रहा है।
स्कूल हो या कॉलेज छात्र और छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय बनाने का नियम है और उनके रास्ते भी अलग होने चाहिए। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत स्कूल को तभी मान्यता मिलती है जब वे प्रारुप एक की शर्तों को पूरा करते हों। @Patrika. प्रारुप एक में स्कूल के बच्चों की संख्या के आधार पर पृथक-शौचालय बनाने का उल्लेख है।
यह पहला स्कूल होगा जहां शौचालय के गेट के ऊपर नहीं बल्कि अंदर कैमरा लगा रखा है। छोटे से कमरेनुमा टॉयलेट में दो कैमरे लगा रखे है जिसमें एक का फोकस गेट के पास है तो दूसरे का फोकस गल्र्स टॉयलेट की ओर है। टॉयलेट के कैमरा लगाए जाने के बाद छात्राएं वहां जाने से कतरा रही हैं।
स्कूल के टॉयलेट में कैमरा लगाने की बात पर स्कूल की प्राचार्य बात करने को तैयार ही नहीं हुई। अपने बेटे को भेज दिया और वह भी गोलमोल जवाब देकर बचता रहा। @Patrika. वाइस प्रिंसिपल रंजीता सेन ने खुद को स्कूल में नया बताकर पहले ही किनारा कर लिया।
स्कूल को भी केवल कागजों के आधार पर मान्यता मिल रही है। भौतिक सत्यापन के नाम पर शिक्षा विभाग से यहां पर आज तक कोई नहीं पहुंचा। क्योंकि अगर कोई पहुंचा होता तो शायद टॉयलेट को देख पहले ही आपत्ति लगा चुका होता।
हेमंत उपाध्याय, दुर्ग डीइओ ने कहा कि टॉयलेट के अंदर कैमरे लगाने का नियम नहीं है। @Patrika. रही बात बालक और बालिका के एक साथ शौचालय की तो यह भी नियमत: गलत है इसकी जांच की जाएगी।