कर्मचारी को उसकी प्रॉपर्टी से हुई कमाई जैसे किराया आदि, उसे दूसरे नियोक्ताओं (यदि साल में एक से ज्यादा जगह नौकरी की हो तो) की ओर से मिले भुगतान की डिटेल अब फॉर्म-16 में दी जाएगी। अन्य स्रोतों से आय जैसे ब्याज, डिविडेंड, खेती से आय की जानकारी भी अब कर्मचारियों को डिक्लेरेशन के माध्यम से नियोक्ता को देनी होगी और सभी आय को संज्ञान में लेकर नियोक्ता कर की गणना कर सैलरी से कटौती करेगा।अब नियोक्ता को सैलरी में से किस मद में कितनी कटौती हुई, यह बताना पड़ेगा
आयकर विभाग द्वारा संशोधित फार्म-16 इसी साल 12 मई से प्रभावी हो जाएगा। यानी वित्त वर्ष 2018-19 का रिटर्न नए फॉर्म के आधार पर भरना होगा। इससे कई नियोक्ताओं को परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता है, क्योंकि सभी ने पिछले वर्ष तक उस समय के लागू कानून अनुसार सैलरी की गणना और डिक्लेरेशन को लिया था और खुद का सॉफ्टवेयर आदि भी उसी आधार पर बनवाया था। अब नए नियम के हिसाब से सॉफ्टवेयर आदि में बदलाव भी करना पड़ सकता है।
नौकरीपेशा के अलावा ऐसे लोग जिनके खातों का ऑडिट नहीं होना है, उन्हें 31 जुलाई तक रिटन फाइल करना होगा। इसके बाद पेनाल्टी लगेगी। फार्म-16 और कर्मचरी/करदाता की जमा आयकर रिटर्न को आयकर विभाग के सॉफ्टवेयर के माध्यम से मिलान किया जाएगा।
फॉर्म 16 आयकर की धारा 203 के प्रावधानों के अनुसार दिया जाता है इसलिए इसमें की गई गलती पर विभाग द्वारा पेनलटी लगाई जा सकती है। सभी नियोक्ता (सरकारी, गैर सरकारी आदि) अपने कर्मचारियों के लिए वित्त वर्ष खत्म होने के बाद फार्म-16 जारी करते हैं। इसलिए यह नियम अब सभी के लिए एक समान लागू होगा तो सरकारी विभागों को ज्यादा सतर्कता से फार्म 16 बनाना होगा। इसमें कर्मचारियों के टीडीएस की जानकारी होती है। फार्म-16 के आधार पर ही कर्मचारी अपना आयकर रिटर्न भरते हैं। नियोक्ता जून में फार्म-16 जारी करते हैं।
जिन अलाउंस पर टैक्स छूट मिलती है वो मिलती रहेगी लेकिन नियोक्ता को सभी मदों में की जाने वाली कटौती का पूरा ब्यौरा फॉर्म-16 में देना होगा। फिलहाल डेली अलाउंट, टैवल, कन्वेंस, हेल्पर, एकेडमिक, यूनिफार्म पर छूट दी जाती है।
१. मोबाइल अलाउंस पर टैक्स छूट नहीं मिलती, जिन अलाउंस पर छूट मिलती है उन्हीं को क्लेम कर पाएंगे।
२. कर्मचारी ने टैक्स में छूट लेने के लिए 1 लाख रुपए का निवेश किया लेकिन नियोक्ता को फाइनल डिक्लेरेशन देने के वक्त 70 हजार के सूबत पेश कर पाया तो क्या रिटर्न फाइल करते वक्त बाकी 30 हजार पर क्लेम कर पाएगा। कर्मचारी पहले की तरह अब भी ऐसा कर सकेंगे। बशर्ते निवेश वास्तविक होना चाहिए। जांच के दायरे में आए तो आयकर विभाग सबूत मांग सकता है।
नियोक्ता आयकर विभाग को यह फॉर्म देता है। इसमें अब उन गैर-संस्थागत इकाइयों का पैन नंबर भी बताना होगा। जहां से कर्मचारी ने घर खरीदने या बनाने लोन लिया है।
कुछ वर्षों पूर्व भिलाई में एक कर सलाहकार के यहां छापा मारकर आयकर विभाग ने बड़े पैमाने में आयकर चोरी का भंडाफोड़ किया था। आयकर विभाग ने जब देशभर में पड़ताल की तो बड़े पैमाने पर इस तरह की टैक्स चोरी का खुलासा हुआ। सभी जगह टैक्स बचाने लगभग एक ही तरह के हथकंडे अपनाए गए थे। नियोक्ता ने फॉर्म-16 की जानकारी को कम दर्शाकर या अन्य स्रोतों से आय छुपाया गया था या बिना बचत के सबूत के आयकर विवरणी में बचत की छूट ली गई थी। इसी के चलते फॉर्म-16 का प्रारूप बदला गया है।