scriptगोल्ड मेडल जीतकर भी दूसरों के पुराने कपड़े सिल रही इंटरनेशनल प्लेयर, गरीबी के आगे बेबस होनहार खिलाड़ी | International player sewing clothes in poverty in Durg | Patrika News

गोल्ड मेडल जीतकर भी दूसरों के पुराने कपड़े सिल रही इंटरनेशनल प्लेयर, गरीबी के आगे बेबस होनहार खिलाड़ी

locationभिलाईPublished: Jul 11, 2021 03:58:47 pm

Submitted by:

Dakshi Sahu

Taekwondo Player: शिवानी वैष्णव ने मात्र 17 वर्ष की उम्र में राज्य और देश के लिए ताइक्वांडो में 15 से ज्यादा पदक जीत लिए, लेकिन अब उन्हें अपने खेल को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

गोल्ड मेडल जीतकर भी दूसरों के पुराने कपड़े सिल रही इंटरनेशनल प्लेयर, गरीबी के आगे बेबस होनहार खिलाड़ी

गोल्ड मेडल जीतकर भी दूसरों के पुराने कपड़े सिल रही इंटरनेशनल प्लेयर, गरीबी के आगे बेबस होनहार खिलाड़ी

कोमल धनेसर@भिलाई. दुर्ग जिले के कुम्हारी की शिवानी वैष्णव ने मात्र 17 वर्ष की उम्र में राज्य और देश के लिए ताइक्वांडो में 15 से ज्यादा पदक जीत लिए, लेकिन अब उन्हें अपने खेल को जिंदा रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। बीमार पिता का इलाज और घर की जिम्मेदारी के बीच शिवानी अब दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर रही है। अब वह सिलाई मशीन के सहारे टुकड़ों में बंटी अपनी जिंदगी को सिलने की कोशिश में लगी है। वह कहती हैं कि घर में आय का जरिया न होने से वह खेल नहीं सकतीं। अगर सरकार मदद का हाथ बढ़ाए तो राज्य और देश के लिए कई और मेडलों की झड़ी लगा सकती है।
17 साल में बनी रेफरी
शिवानी ताइक्वांडो और कराटे में महज 17 साल की उम्र में ही ब्लैक बेल्ट हैं। वह दो बार इंटरनेशनल मैच में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। साल 2017-18 में राज्य स्तर पर स्वर्ण पदक पाया था। वर्ष 2018 में नेशनल कराटे में सिल्वर मेडल जीता। दिल्ली में 2019-20 में हुए राष्ट्रीय खेलों में गोल्ड मेडल जीता। वर्ष 2019 में कोलकाता में हुई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में सिल्वर मेडल जीता। वह 17 साल की उम्र में ताइक्वांडो की स्टेट रेफरी भी रह चुकी है।
गोल्ड मेडल जीतकर भी दूसरों के पुराने कपड़े सिल रही इंटरनेशनल प्लेयर, गरीबी के आगे बेबस होनहार खिलाड़ी
दे रही थी कोचिंग
परिस्थितियों ने कम उम्र में ही मुझे बड़ी जिम्मेदारी दे दी। दरअसल मेरे पिता की तबीयत बिगडऩे के बाद से परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है। मां लकड़ी टाल में काम करती हैं और जो कमाती हैं, पिता के इलाज में खर्च होता है। घर चलाने के लिए मैंने बच्चों को ताइक्वांडो की कोचिंग देनी शुरू की थी, लेकिन कोरोना की वजह से वह भी बंद हो गई। अब सिलाई कर घर का खर्च चलाती हूं।
पुराने कपड़े सिलकर चला रहा गुजारा
अब शिवानी कुछ बच्चों के घरों में जाकर ट्रेनिंग दे रही हैं, लेकिन जब इससे भी खर्चे पूरे नहीं हुए तो उन्होंने पुराने कपड़े सिलने का काम शुरू किया। फिर घर में ही एक छोटी सी दुकान भी शुरू की, लेकिन लॉकडाउन की वजह से यह दुकान ठीक से नहीं चल रही और अब उनकी मां का काम भी बंद हो गया।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो