कुंजलाल का बच्चों को पढ़ाने का सलीका अपने आप में निराला है। गहिरा नवागांव के शासकीय प्राथमिक शाला में वह बच्चों को मौखिक पढ़ाई ऐसे कराते हैं कि बच्चे ब्लैक बोर्ड पर भी इतने आसान तरीके से नहीं समझ सकते। कक्षा पहली से पांचवीं तक की कक्षा में हिंदी, अंग्रेजी, सामान्य ज्ञान, व्याकरण के साथ-साथ देश व प्रदेश की महत्वपूर्ण जानकारियां उनको कंठस्थ हैं।
कुंजलाल को बचपन से ही पढ़ाई की इच्छा थी। मात्र 6 माह की उम्र में ही नेत्रहीनता उसकी पढ़ाई में रोड़ा बनी और वह पढ़ाई नहीं कर सके। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक शाला में ग्रहण की जहां वे अब बच्चों को पढ़ाते है। कक्षा पांच की पढ़ाई पूरी करने के बाद ओपन स्कूल से आठवीं तक पढ़ते-पढ़ते अब बच्चों को भी पढ़ाने लगे।
कुंजलाल अपने घर का काम भी खुद करते हैं। स्कूल आना-जाना, स्कूल के बच्चों से लेकर दूसरे शिक्षक भी उनकी तारीफ करते नहीं थकते हैं। वे कंठ के भी धनी हैं। अपनी सुरीली आवाज के जादू से हिंदी छत्तीसगढ़ी प्रेरणास्प्रद गीत व भजन सुनाकर सबको अपनी और खींच लेते हैं। उन्होंने बताया कि वह रामधुनी व रामचरित मानस पाठ में भजन भी गाते है।
पत्रिका की टीम गांव के स्कूल पहुंची तो दिव्यांग कुंजलाल बच्चों को गीत सुना रहे थे फिर पाठ्य पुस्तक से पढाई। उनको पाठ्य पुस्तक के कुछ पाठ पूरी तरह कंठस्थ है। उन्होंने बताया कि वह सन 2001 से ही इस प्राथमिक शाला में बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उन्हें इस स्कूल में पढ़ाते 19 साल हो गए है।
कुंजलाल की इस सेवाभाव से पूरा गांव खुश है। वे भी खुश होकर बच्चों को पढ़ाते है। उन्हें सिर्फ इस बात का अफसोस है कि वे अपने माता-पिता जी को देख नहीं पाते हैं। 36 की उम्र में नहीं देख पाने का कसक मन में है। मेरे दोनों आंख ठीक होते तो मैं शिक्षक बनता और बच्चों को अच्छे से पढ़ा पाता।
दिव्यांग कुंजलाल अन्य दिव्यांगजनों के लिए आदर्श है। उन्होंने कहा कि कभी भी किसी दिव्यांगों उपहास या मजाक न उड़ाएं, बल्कि ऐसे लोगों को सम्मान दें। ताकि दिव्यांग भी समाज में आत्मसम्मान के साथ जी सके।
दिव्यांग कुंजलाल अपनी कड़ी मेहनत और लगन के बूते मास्टर बन गए हैं। गांव में लोग उसे कुंजलाल मास्टर के नाम से जानते है। प्रदेश के पूर्व राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय, बालोद के पूर्व कलक्टर अमृत खलखो, पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए सम्मानित कर चुके हंै।